Moral Stories in Hindi मैं पढ़ना पसंद करते हैं तो आपका हार्दिक स्वागत है हमारे इस कहानी से भरे भंडार में नैतिक कहानियां वह भी हिंदी में पढ़ना या सुनना सभी को पसंद है चाहे वह कोई बड़ा व्यक्ति हो या कोई बच्चा हमारे पास Moral Stories for Kids in Hindi का ढेरों मोरल स्टोरीज उपलब्ध है और यह सभी Moral Stories With Pictures के साथ खास तौर पर आपके लिए उपलब्ध कराया गया है।
- ▶ मुर्गा और बिल्लियां ◀
- ▶ गुलाम एंड्रोक्लिस ◀
- Moral stories for kids in Hindi ▶ टिड्डा और चींटी ◀ Moral Stories in Hindi
- ▶ बोलने वाला गधा ◀
- ▶ कछुआ और खरगोश ◀
- ▶ चींटी और फाख्ता ◀
- ▶ मूर्ख कौआ ◀
- ▶ सारस का बदला ◀
- ▶ खट्टे अंगूर ◀
- ▶ लालची किसान ◀
- ▶ झूठा चरवाहा ◀
- ▶ दो दोस्त और भालू ◀
- ▶ बेकरी और चूहे ◀
- ▶ चालाक चोर ◀
- ▶ चूहा और शेर ◀
- ▶ मूर्ख गधा ◀
- ▶ सच्चा दोस्त ◀
- ▶ धोखेबाज सांप ◀
- ▶ चालाक कौआ ◀
- ▶ लाचार शेर ◀
- ▶ स्वार्थी लोमड़ ◀
- ▶ शेर, लोमड़ और गधा ◀
- ▶ डरपोक शिकारी ◀
- ▶ बैल और मच्छर ◀
- ▶ लालची कुत्ता ◀
- ▶ कबूतर और कांच ◀
- ▶ चक्की-मालिक और गधा ◀
- ▶ बैलों का दुख ◀
- ▶ भेड़िये की परछाईं ◀
- ▶ निर्दयी किसान ◀
- ▶ चरवाहे को सबक ◀
- ▶ चतुर चूहा ◀
- ▶ लोमड़ी और शेर ◀
- ▶ भूखा भेड़िया ◀
- ▶ पनीर का टुकड़ा ◀
- ▶ शेर का घमंड ◀
- ▶ बेरहम बिल्ली ◀
- ▶ कछुआ और हंस ◀
- ▶ हाथी और चूहे ◀
- ▶ केकड़े ने घर छोड़ा ◀
- ▶ हंस और चील ◀
- ▶ चतुर पक्षी ◀
- ▶ राजा के नकली बाल ◀
- ▶ बुद्धिमान उल्लू ◀
▶ मुर्गा और बिल्लियां ◀
किसी फार्महाउस में बहुत से जानवरों के साथ एक मुर्गा रहता था। एक दिन उसे कहीं से खिलौना-गाड़ी मिल गई। वह मुर्गा दुनिया की सैर करना चाहता था, अतः खिलौना-गाड़ी देखकर वह खुशी के मारे उछलने लगा।
मुर्गे ने ऐलान कर दिया, “मैं इस गाड़ी पर सवार होकर दुनिया की सैर करने जा रहा हूँ।” उसने सोचा, ‘अब सभी लोग मेरा सम्मान करेंगे और मुझे देखकर प्रणाम किया करेंगे।’
दुनिया की सैर करने के जोश में मुर्गा यह भूल गया था कि गाड़ी खींचने के लिए किसी की जरूरत पड़ेगी। जिस दिन उसने सैर पर जाने की योजना बनाई, उस दिन कोई भी उसकी गाड़ी को खींचने के लिए तैयार नहीं था। वह बोला, “हाय! अब क्या होगा? में दुनिया की सैर नहीं कर सकूंगा।”
तभी उधर से जा रही दो बिल्लियों ने मुर्गे की बात सुन ली। उन्होंने कहा कि वे दोनों उसके लिए यह काम कर सकती हैं। बिल्लियां मुर्गे से बोलीं, “तुम जहां कहोगे, हम गाड़ी को वहीं ले चलेंगे। हम बहुत ताकतवर हैं और हमें सारे रास्ते भी मालूम हैं।”

यह सुनकर मुर्गे को बहुत अच्छा लगा। फिर अगले ही दिन उसने अपनी यात्रा शुरू करने का फैसला कर लिया। तभी एक मुर्गी वहां आई और उसने उसे चेतावनी दी, “प्यारे मुर्गे, हमारी दोस्ती इन बिल्लियों से नहीं हो सकती। तुम्हें यहीं हमारे साथ रहना चाहिए। तुम यहीं सुरक्षित रह सकते हो ।”
मुर्गे ने मुर्गी की सलाह अनसुनी कर दी और अपनी यात्रा पर निकल पड़ा। जब वे घने जंगल में पहुंचे, तो गाड़ी एक झटके से रुक गई। मुर्गे ने पूछा, “गाड़ी को क्यों रोका गया है?” लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला।
मुर्गा समझ गया कि बिल्लियों की नीयत में खोट है, इसीलिए उन्होंने गाड़ी रोक दी है। अब वह अपने दोस्तों से बहुत दूर, गाड़ी में अकेला बैठा था। वह डर के मारे कांप उठा। मुर्गा समझ गया था कि अब वह वहां से जिंदा वापस नहीं जा सकता। उसने अपने सभी दोस्तों और परिवार को याद किया तथा मन ही मन उनसे विदाई भी ले ली।
तभी मुर्गे को अपनी दोस्त मुर्गी की चेतावनी याद आई। उसने उसे बताया था कि बिल्लियां कभी उसकी मददगार नहीं हो सकतीं। वे निश्चित ही उसका काम तमाम कर देंगी, लेकिन उस समय उसने किसी की बात नहीं सुनी। यही सब सोचकर मुर्गे की आंखों के आगे अंधेरा छा गया।
मुर्गे ने वहां से बचकर निकलना चाहा, लेकिन दोनों बिल्लियों के बल के आगे उसकी एक न चली। उन्होंने उसे गाड़ी से नीचे गिराकर अपने पंजों में दबोच लिया और देखते ही देखते उसके पंख नोच डाले।
फिर दोनों बिल्लियों ने मुर्गे की दावत उड़ाई और बड़े मजे से अपने घर चली गईं। उन्होंने उस सुंदर खिलौना-गाड़ी को जंगल में ही छोड़ दिया था। अब वह गाड़ी उनके किसी काम की नहीं थी।Moral Stories in Hindi
नैतिक कहानी – Moral Stories in Hindi
▶ गुलाम एंड्रोक्लिस ◀
बहुत समय पहले की बात है। एक अमीर आदमी के पास एंड्रोक्लिस नामक एक गुलाम था। वह एंड्रोक्लिस से अपने घर और बाहर का सारा काम करवाता था। मगर वह उसे खाने के लिए बहुत कम भोजन देता था।
इसके अलावा वह उसे कोड़ों से मारता था। ऐसी स्थिति में एक दिन एंड्रोक्लिस अपने निर्दयी मालिक के घर से जंगल में भाग गया। अब वह भोजन और पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। तभी उसे एक शेर दिखाई दिया, जो दर्द के कारण परेशान था।
जब एंड्रोक्लिस ने उसके पास जाकर देखा, तो उसे पता चला कि शेर का दायां पंजा सूजा हुआ था। एंड्रोक्लिस को देखकर शेर ने अपना पंजा उसके हाथ पर रख दिया। एंड्रोक्लिस ने देखा कि शेर के पंजे में गड़े एक बड़े कांटे के कारण उसे कष्ट हो रहा था।

एंड्रोक्लिस ने ज्यों ही उसके पंजे से कांटा निकाला, त्यों ही शेर ने चैन की सांस ली। फिर धीरे-धीरे उसका दर्द घटने लगा। शेर ने एंड्रोक्लिस को चाटकर अपना आभार प्रकट किया। रात को शेर उसे अपनी गुफा में ले गया और एंड्रोक्लिस उसके साथ ही रहने लगा।
लेकिन एक दिन एंड्रोक्लिस को राजा के सिपाहियों ने पकड़ लिया। राजा ने एंड्रोक्लिस को कड़ी सजा देने की घोषणा की। राजा ने सिपाहियों से कहा कि एंड्रोक्लिस को भूखे शेर के आगे छोड़ दिया जाए।
फिर एंड्रोक्लिस को सजा मिलने का दिन आ गया। उसे शेर के खुले बाड़े में पहुंचाकर भूखा शेर छोड़ दिया गया। पहले तो शेर अपने शिकार को देखकर उसकी ओर दौड़ा। लेकिन जब वह उसके पास पहुंचा, तो उसने एंड्रोक्लिस को पहचान लिया और वहीं रुक गया।
एंड्रोक्लिस को मारकर खाने के बजाय शेर ने उसे प्यार से चाटा और अपने पंजे से सहलाया। उसने एंडोक्लिस को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। वह उसके सामने आज्ञाकारी बालक की तरह खड़ा रहा। वहां उपस्थित लोग शेर का ऐसा प्यार देखकर हैरान रह गए।
तब राजा ने एंड्रोक्लिस को अपने पास बुलाकर उसकी आपबीती सुनी। सारी बात सुनकर उसने एंड्रोक्लिस को आजाद कर दिया। फिर उस कृतज्ञ और वफादार शेर को जंगल में वापस भेज दिया गया। Moral Stories in Hindi
▶ टिड्डा और चींटी ◀ Moral Stories in Hindi
गर्मियों के दिन थे। एक टिड्डा खेत में गाते हुए ठुमके लगा रहा था, जबकि एक चींटी कड़ी धूप में मेहनत कर रही थी। वह सर्दी के मौसम के लिए अपने गोदाम में अनाज के दाने इकट्ठा कर रही थी।
टिड्डे ने चींटी की मेहनत का मजाक उड़ाते हुए कहा, “तुम इतनी कड़ी मेहनत क्यों कर रही हो? थोड़ा आराम करो। अभी सर्दियां आने में बहुत समय है। बाद में अनाज के दाने एकत्र कर लेना। आओ, हम लोग मिलकर गाना गाएं।”

चींटी बोली, “नहीं, नहीं! मैं अनाज एकत्र करने के लिए दूसरी चींटियों की मदद कर रही हूं। मैं तुमको सलाह देती हैं
कि तुम भी ऐसा ही करो, वरना सर्दियों में बहुत पछताओगे। तुम्हें कुछ भी खाने को नहीं मिलेगा। तुम भूखे मर जाओगे।”
टिड्डे ने चींटी की बात नहीं मानी। वह आराम से अपने मनपसंद पेड़ के नीचे लेटा रहता। वह भरपेट खाना खाता और आराम करता। उसने सदी के मौसम के लिए कोई अनाज इकट्ठा नहीं किया।
जब सर्दी का मौसम आया, तो टिड्डे के पास कोई भोजन नहीं था। वह भूख के कारण अधमरा हो गया था। इस दौरान उसने देखा कि चींटियां अनाजों के दाने आपस में बांट रही थीं, जो उन्होंने गर्मियों में एकत्र किए थे। टिड्डे ने भूख से परेशान होकर चींटी के घर का दरवाजा खटखटाया।
“मेहरबानी करके मुझे थोड़ा-सा खाना दे दो, वरना भूख के कारण मेरी जान निकल जाएगी।” उसने भीख मांगते हुए कहा।
चींटी बोली, “जब हम सही समय पर आने वाले वक्त के लिए योजना नहीं बनाते, तो हमारे साथ ऐसा ही होता है। मैं तुम्हें कुछ बचे हुए दाने दे सकती हूं। लेकिन तुम्हें यह वचन देना होगा कि आगामी गर्मी में तुम सर्दी के मौसम के लिए अनाज इकट्ठा करोगे।”

टिड्डे ने चींटी की बात मान ली। वह चींटी का अत्यंत एहसानमंद था, लेकिन उसने पूरी सर्दी बहुत परेशानी और मुसीबत से बिताई। फिर गर्मियां आते ही टिड्डे ने भी सर्दी के मौसम के लिए भोजन एकत्र करना शुरू कर दिया।
उसने आने वाले समय के लिए सोचना और योजना बनाना सीख लिया था। अब वह बहुत प्रसन्न रहता था। Moral Stories in Hindi
▶ बोलने वाला गधा ◀
एक दिन एक बंजारा अपने गधे के साथ शहर गया। वह अपना गधा बेचना चाहता था, इसलिए बाजार में जा पहुंचा। उसने आवाज लगाते हुए कहा, “मेरा गधा बहुत मेहनती है और यह बोल भी सकता है।” लेकिन बंजारे की बात सुनकर सभी लोग उसका मजाक उड़ाने लगे, “गधे नहीं बोल सकते। यह कोई निराला गधा नहीं है।”
तब बंजारे ने धैर्यपूर्वक काम लेते हुए कहा, “यह कोई आम गधा नहीं, एक विशेष गधा है। यह बोले गए आखिरी वाक्य को दोहराता रहता है, भले ही उसका अर्थ न जानता हो।”
वहीं एक नानबाई भी खड़ा था। उसे बंजारे की बात पर यकीन नहीं आया। लेकिन नानबाई को आटे की भारी बोरियां लादने के लिए गधे की जरूरत थी, अतः उसने बंजारे से वह गधा खरीदने का विचार किया। फिर वह गधे के दाम चुकाकर उसे अपने घर ले आया।

अगले दिन नानबाई अपने परिवार वालों से बोला, “मैं आटा-मिल जा रहा हूं और गधे को भी साथ ले जा रहा हूं। लेकिन आटा-मिल का मालिक बड़ा धोखेबाज है, इसलिए मैं घर आकर आटा तौलकर अपनी तसल्ली करूंगा। सभी आटा-मिल वाले दुष्ट होते हैं।
” फिर नानबाई गधे को अपने साथ लेकर आटा-मिल की ओर चल दिया। ज्यों ही वह आटा-मिल पर पहुंचा, उसके मालिक से उसकी मुलाकात हो गई। जब गधे ने आटा-मिल के मालिक को देखा, तो वह चिल्लाया, “सभी आटा-मिल वाले दुष्ट होते हैं।”
गधे की बात सुनकर नानबाई शर्मिंदा हो गया। उसने आटा-मिल के मालिक से माफी मांगी। उसने कहा कि यह गधा बिना कुछ समझे यूं ही बकता रहता है। यह कही गई बातों को दोहराता रहता है।
यह सुनकर आटा-मिल के मालिक को काफी गुस्सा आया। वह बोला, “लेकिन इसके सामने यह बात किसने कही? तुम्हीं ने कही होगी!” फिर आटा-मिल के मालिक ने नानबाई को अपनी दुकान से बाहर निकाल दिया।
जब नानबाई अपने घर वापस जा रहा था, तो उसने सोचा, ‘अब मैं गधे के सामने केवल अच्छी बातें ही कहूंगा।’ इस तरह नानबाई ने अपना स्वभाव बदल दिया। ऐसे में लोग बहुत खुश हुए। नानबाई सुखपूर्वक अपना जीवन निर्वाह करने लगा। – Moral Stories in Hindi
Moral Stories in Hindi – Moral Story In Hindi With Picture
▶ कछुआ और खरगोश ◀
किसी जंगल में दूसरे जानवरों के साथ एक खरगोश रहता था। सभी जानवर जानते थे कि खरगोश सबसे तेज भागने वाला जानवर है। इसी बात ने खरगोश को काफी घमंडी बना दिया था। अतः जंगल के बहुत से जानवर उसे बिल्कुल पसंद नहीं करते थे।
एक दिन खरगोश यूं ही इधर-उधर टहल रहा था। तभी अचानक उसकी नजर एक कछुए पर पड़ी, जो बहुत धीरे-धीरे चल रहा था। उसने कछुए के पास जाकर कहा, “तुम इतना धीरे क्यों चल रहे हो? तुम्हें तेज चलना सीखना चाहिए। मुझे देखो, मेरी चाल कितनी तेज है!”
कछुए ने धीरज रखते हुए कहा, “मैं अपना घर अपने साथ लेकर चलता हूं। मैं धीरे चलता हूं और अपनी गति का पूरा आनंद लेता हूं।”
यह सुनकर खरगोश को अच्छा नहीं लगा। वह चाहता था कि कछुआ उसकी तारीफ करे। उसने कछुए को दौड़ लगाने की चुनौती दे दी। खरगोश ने सोचा, ‘कछुआ नहीं दौड़ सकता। यह शर्मिंदा होकर मुझसे माफी मांग लेगा।’ लेकिन कछुए ने खुशी-खुशी उसकी चुनौती कबूल कर ली।
“एक-दो-तीन, दौड़ शुरू!” इस तरह दौड़ शुरू हो गई। खरगोश तेजी से दौड़ पड़ा, मगर कछुआ धीरे-धीरे रेंगने लगा। कुछ दूर दौड़ने के बाद खरगोश विश्राम करने के लिए एक पेड़ के पास रुक गया।

खरगोश ने मुड़कर कछुए को देखना चाहा, लेकिन वह उसे दूर तक नहीं दिखाई दिया। उसने निश्चय किया कि वह पेड़ के नीचे कुछ देर आराम करेगा, फिर पहले की तरह दौड़कर कछुए से आगे निकल जाएगा।
यह सोचकर खरगोश उस पेड़ के नीचे लेट गया। कुछ ही देर में उसे नींद आ गई। जब वह जागा, तो दिन ढल चुका था। वह दौड़ समाप्त होने वाली रेखा की ओर भागा।
लेकिन यह क्या! वहां तो धीरे-धीरे चलने वाला कछुआ पहले ही पहुंच गया था। ऐसे में खरगोश को बहुत गुस्सा आया। वह चिल्लाया, “तुम दौड़ कैसे जीत सकते हो? तुम तो मुझसे बहुत पीछे थे?” कछुए ने मुस्कराकर कहा, “मेरी चाल धीमी थी, लेकिन मैं लगातार चलता रहा। यही वजह है कि में दौड़ जीत गया।” (Moral Stories in Hindi)
▶ चींटी और फाख्ता ◀ Moral stories for kids in Hindi
एक चींटी सारा दिन काम करने के बाद अपने घर की ओर चल पडी। वह एक नदी के किनारे-किनारे जा रही थी। तभी चींटी अचानक एक पत्थर से टकराई और नदी में जा गिरी।
चींटी बुरी तरह डर गई और अपने आसपास कुछ खोजने लगी, ताकि उसे पकड़कर वह अपनी जान बचा सके। कुछ ही दूरी पर उसे पानी में बहती एक टहनी दिखाई दी। वह उसकी ओर बढ़ी और उसे पकड़ लिया। लेकिन तभी चींटी को एहसास हुआ कि वह टहनी पानी में बहती हुई उसे घर से उल्टी दिशा में ले जा रही थी। चींटी घबराकर रो पडी और जोर-जोर से चिल्लाने लगी, “बचाओ-बचाओ! मेरी मदद करो।”

एक फाख्ता नदी के पास से जा रहा था। उसने चींटी की आवाज सुनी। जब वह उड़ते हुए नदी के पास पहुंचा, तो देखा कि एक चींटी टहनी को पकड़े बही जा रही थी। दयालु फाख्ता ने उस टहनी को अपनी चोंच से उठा लिया और चींटी को उसके घर के पास छोड़ दिया।
इस तरह चींटी की जान बच गई, लेकिन पानी में भीग जाने के कारण वह बुरी तरह कांप रही थी। मगर सूरज की धूप मिलते ही उसे काफी आराम मिल गया। उसने चैन की सांस ली।
चींटी फाख्ता की बहुत एहसानमंद थी। उसने उसे धन्यवाद दिया, तो फाख्ता बोला, “यह तो हमारा फर्ज है कि जरूरतमंद की सहायता की जाए। मुझे खुशी है कि मैं तुम्हारे काम आ सका।” यह कहकर वह दयालु फाख्ता नीले आसमान में उड़ गया।
कुछ ही दिनों बाद वह चींटी जंगल की ओर जा रही थी। तभी उसने एक शिकारी को देखा, जो पेड़ पर बैठे एक फाख्ता पर निशाना लगा रहा था। चींटी ने फाख्ता को तुरंत पहचान लिया और शिकारी की ओर दौड़ी।
ज्यों ही शिकारी ने फाख्ता पर निशाना साधा, चींटी ने शिकारी के जूते पर चढ़कर उसकी टांग में काट लिया। शिकारी दर्द के कारण छटपटा उठा और उसका निशाना चूक गया। ऐसे में फाख्ता पेड़ से उड़ गया। चींटी ने उसकी जान बचा ली थी।
Best Moral Stories in Hindi for Kids
▶ मूर्ख कौआ ◀
काफी समय पहले की बात है। किसी जंगल में एक स्वार्थी लोमड रहता था। एक दिन लोमड़ ने देखा कि पेड़ पर एक कौआ बैठा था। उसके मुंह में पनीर का एक बड़ा-सा टुकड़ा था। लोमड़ ने सोचा, ‘पनीर तो बहुत स्वादिष्ट होता है और मुझे भूख लगी है। मैं इसे कौए से ले लेता हूं।’
यह सोचकर लोमड़ उस कौए के पास गया और बोला, “नमस्ते! तुम्हारे पास पनीर का बड़ा-सा टुकड़ा है। क्या तुम एक छोटा-सा टुकड़ा मुझे दे सकते हो?” लोमड़ की बात सुनकर कौए ने मना कर दिया। लोमड़ ने कौए से विनती की, लेकिन कौआ नहीं माना। कौआ आराम से बैठकर वह पनीर खाना चाहता था। अतः वह उड़कर दूसरे पेड़ पर जा बैठा।
लेकिन लोमड़ ने हार नहीं मानी। वह उस पेड़ के पास जाकर कौए से बोला, “क्या तुम वही कौए हो, जिसके बारे में जंगल में बातें होती रहती हैं?” लोमड़ की बात सुनकर कौए को बहुत अच्छा लगा, लेकिन वह पूरी तरह सावधान था। कौआ जानता था कि लोमड़ बहुत चालाक होता है। अतः वह फिर दूसरे पेड़ पर जाकर बैठ गया।

कुछ देर बाद लड़की ने वहां पहुंचकर कहा, “तुम बहुत सुंदर हो। तुम्हारे पंख और चोंच भी अत्यंत सुंदर हैं। तुम्हारी आवाज भी बहुत मधुर है। जंगल के सभी जानवर तुम्हारी आवाज की प्रशंसा करते हैं। चलो, मुझे कोई गाना सुना दो।” लोमड़ ने देखा कि कौआ घमंड के कारण फूल रहा था।
यह सुनकर कौए को अच्छा लगा कि जंगल के सभी जानवर उसके गाने की तारीफ करते थे। ऐसे में कौआ पनीर के बारे में भूल गया और गाना गाने लगा। ज्यों ही उसने गाना शुरू किया, पनीर का टुकड़ा उसके मुंह से गिरा और लोमड़ उसे मुंह में दबाकर भाग गया।
मूर्ख कौआ अपना पनीर गंवाकर उस पेड़ पर बैठा रोता रहा और लोमड़ ने पनीर की दावत उड़ाई। अतः हमें अपनी तारीफ सुनकर अपना विवेक नहीं खोना चाहिए और यह देखना चाहिए कि कहीं व्यक्ति उसकी झूठी तारीफ तो नहीं कर रहा है।
:- Moral Stories in Hindi -:
▶ सारस का बदला ◀
लोमड़ और सारस में पक्की दोस्ती थी। एक दिन लोमड़ को मजाक सूझा। उसने सोचा कि वह अपने दोस्त सारस को मूर्ख बनाएगा।
वह सारस के पास जाकर बोला, “मेरे प्यारे दोस्त, में कल एक खास तरह का भोजन बना रहा हूँ। अगर तुम कल मेरे घर खाने पर आ सको, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।” सारस ने उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
अगले दिन सारस रात के खाने के समय लोमड़ के घर पहुंच गया। जब वह अंदर गया, तो स्वादिष्ट भोजन की खुशबू आने लगी। वह भरपेट खाने के लिए तैयार था। लोमड़ के कहने पर सारस खाने की मेज पर बैठ गया। लेकिन सारस यह देखकर हैरान रह गया कि लोमड़ ने भोजन को चपटी प्लेटों में परोसा था।

सारस मुश्किल से प्लेट में अपनी चोंच डुबो पा रहा था। जब लोमड़ ने अपना खाना खा लिया, तो उसने सारस का मजाक उड़ाते हुए कहा, ” लगता है, तुम्हें खाना पसंद नहीं आया। तुमने तो कुछ खाया ही नहीं।”
सारस समझ गया कि चालाक लोमड़ उसे बेवकूफ बना रहा था। वह शांत स्वर में बोला, “मित्र, खाना तो बहुत अच्छा बना था, लेकिन मुझे कोई खास भूख नहीं थी। अब मैं चाहता हूं कि कल तुम मेरे घर खाने पर आओ, ताकि मैं तुम्हें अपने हाथों से बनाया स्वादिष्ट खाना खिला सकूं। तुमने भी तो मेरी कितनी अच्छी खातिरदारी की है।”
लोमड़ ने खुशी-खुशी उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। अगले दिन वह सारस के घर की ओर चल दिया। शीघ्र ही वह सारस के घर पहुंच गया। सारस ने उसे बताया कि वह उसके लिए बहुत अच्छा खाना बना रहा था। लालची लोमड़ को काफी भूख लगी थी।
सारस ने लोमड़ को खाने की मेज के सामने बिठा दिया, लेकिन लोमड़ यह देखकर चकरा गया कि सारस ने तंग मुंह वाले बर्तन में खाना परोसा था। वह तो उसमें अपना मुंह तक नहीं डाल पा रहा था।
लोमड़ सारस की चाल समझ गया। उसे अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने अपने दोस्त सारस से अपने किए की माफी मांगी।
Moral Stories in Hindi
▶ खट्टे अंगूर ◀
काफी समय पहले की बात है। किसी खेत के पास एक लोमड़ रहता था। एक दिन उसने किसान की मुर्गियों को इधर-उधर भागते देखा। वह उन मुर्गियों को पकड़कर अपना पेट भरना चाहता था।
एक दिन लोमड़ ने निश्चय किया कि वह किसान के खेत में जाएगा, ताकि मुर्गियों का शिकार कर सके।
जब लोमड़ खेत की ओर जा रहा था, तो उसे प्यास लगी। गर्मियों के दिन थे और आसपास कहीं पानी नहीं दिखाई दे रहा था।
तभी लोमड़ को एक पेड़ के नीचे कुछ रसीले अंगूर गिरे दिखाई दिए। वह सोचने लगा, ‘ये कौन से फल हैं। उम्मीद करता हूं कि ये जहरीले नहीं होंगे।’ लेकिन लोमड़ को बहुत तेज प्यास लगी थी और वह तुरंत पानी पीकर अपनी प्यास बुझाना चाहता था।

अतः वह झट से अंगूरों को निगलकर उनका स्वाद लेने लगा। फिर अपने-आपसे बोला, “मुझे बड़ी खुशी है कि मैं इन गोल दानों का स्वाद लेने के लिए रुक गया। ये तो बहुत स्वादिष्ट हैं।”
जब पेड़ पर बैठे एक पक्षी ने लोमड़ को अंगूर खाते देखा, तो वह बोला, “इन्हें अंगूर कहते हैं। क्या ये तुम्हें अच्छे लगे? मुझे वह जगह मालूम है, जहां तुम जी भरकर अंगूर खा सकते हो।”
उस पक्षी की बात सुनकर लोमड़ बहुत खुश हुआ और उससे बोला कि वह उसे अंगूरों का पेड़ दिखा दे। अब लोमड़ किसान और उसकी मुर्गियों के बारे में भूल गया था।
पक्षी उसे अंगूरों के खेत में ले गया, जहां बेलों पर अंगूर लटक रहे थे। लोमड़ खुशी से उछल पड़ा। लेकिन उसने देखा कि सारे अंगूर पेड़ों की ऊंची शाखाओं पर लगे थे। लोमड़ ने उन तक पहुंचने के लिए बार-बार छलांग लगाई, लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका।
आखिर में लोमड़ बोला, “मुझे खुशी है कि मैं इन अंगूरों तक नहीं पहुंच सकता। ये तो खट्टे दिखाई दे रहे हैं। इन्हें खाने से मेरा गला खराब हो जाएगा। मैं इनके बिना ही ठीक हूं।”
यह सुनकर उस पक्षी को बहुत हंसी आई। उसे मालूम था कि लोमड़ झूठ बोल रहा है। जब वह अंगूरों तक पहुंच ही नहीं सका, तो उसे कैसे पता चला कि अंगूर खट्टे थे।
अर्थात् जो चीज हमारी पहुंच से दूर होती है, उसके लिए ‘अंगूर खट्टे हैं’ की कहावत चरितार्थ होती है।
▶ लालची किसान ◀
एक किसान अपनी पत्नी और मुर्गियों के साथ अपने फार्म पर रहता था। वह रोजाना सुबह फार्म का चक्कर लगाने निकलता। वह अपनी मुर्गियों को दाना देता, उनके रहने की जगह साफ करता और यह देखता कि वे ठीक-ठाक हैं या नहीं। उन्हें कोई परेशानी तो नहीं हो रही है।
एक दिन किसान जब मुर्गी के बाड़े के पास से गुजरा, तो उसे वहां एक सुनहरा अंडा पड़ा दिखाई दिया। वह उसे उठाकर अपनी पत्नी को दिखाने दौड़ा। उसने कहा, “देखो, हमारी एक मुर्गी ने सुनहरा अंडा दिया है। यह तो सोने का अंडा लग रहा है। अब हमें कभी काम नहीं करना पड़ेगा, लेकिन हमें यह नहीं पता कि यह किस मुर्गी का अंडा है।”
किसान की पत्नी ने यह काम अपने सिर ले लिया। उसने कहा कि वह रात को देखेगी कि कौन-सी मुर्गी सोने का अंडा देती है। शीघ्र ही किसान तथा उसकी पत्नी को उस मुर्गी का पता चल गया और उन्होंने उसके लिए एक आरामदायक घर बना दिया।

अब किसान की पत्नी उस मुर्गी की विशेष देखभाल करती और उसे अच्छा खाना खिलाती। वे लोग रोजाना सुबह उस मुर्गी के दड़बे से सोने का अंडा उठा लाते। इस प्रकार सोने के अंडे बेचकर किसान का परिवार दिनोदिन अमीर होता चला गया।
वे अपने घर के लिए बहुत-सा नया सामान ले आए। लोग उनकी अमीरी देखकर बातें बनाने लगे। वे इस बात पर हैरान हो रहे थे कि किसान के घर में अचानक इतना पैसा कहां से आ गया। अब किसान का परिवार अमीर बनने के साथ-साथ लालची भी हो गया था।
एक रात किसान की पत्नी ने उससे कहा, “हमें अंडे के लिए रोजाना इंतजार करने की क्या जरूरत है। क्यों न हम मुर्गी को मारकर एक ही बार में उसके पेट से सोने के सारे अंडे निकाल लें। उसके पेट में तो सोना ही सोना भरा होगा। तभी तो वह रोजाना सोने के अंडे देती है।”
पत्नी की बात सुनकर किसान ने हामी भर दी। उसी रात उन्होंने उस मुर्गी का पेट काट दिया। लेकिन उन्हें यह देखकर बहुत मायूसी हुई कि उसके पेट में कोई सोना नहीं था। किसान और उसकी पत्नी मरी हुई मुर्गी को अपनी बांहों में लेकर रोने लगे। लालच का फल हमेशा बुरा ही होता है।
▶ झूठा चरवाहा ◀
किसी गांव में एक जवान चरवाहा रहता था। वह प्रतिदिन दोपहर में अपनी भेड़ों को चराने के लिए पहाड़ी पर ले जाता था।
एक दिन चरवाहे को एक शरारत सूझी। उसने सोचा, ‘अगर मैं मदद के लिए जोर-जोर से चिल्लाऊं, तो देखें, क्या होता है।’ यह सोचकर वह चिल्लाने लगा,
“भेड़िया-भेड़िया! बचाओ।” जब गांव वालों ने चरवाहे की पुकार सुनी, तो वे अपने हाथों में लाठियां लेकर पहाड़ी की ओर दौड़े। वहां पहुंचकर गांव वालों को पता चला कि चरवाहा उनसे मजाक कर रहा था। वे उसे डांटकर गांव वापस चले गए।
अगले दिन चरवाहा फिर चिल्लाया, “भेड़िया-भेड़िया! मेरी मदद करो।” सारे गांव वाले फिर लाठियां आदि लेकर पहाड़ी की ओर दौड़े। लेकिन वहां चरवाहा अपनी भेड़ों के साथ शांतिपूर्वक खड़ा था।
जब गांव वालों ने चरवाहे से भेड़िये के बारे में पूछा, तो वह बोला,”में तो एक कुत्ते को भेड़िया समझकर डर गया था।” गांव वालों ने उसे फिर डांटा और सावधान रहने की चेतावनी देकर लौट गए।
जब गांव वाले वापस चले गए, तो चरवाहा दिल खोलकर हंसा। उसने आज फिर सबको मूर्ख बना दिया था।
तीसरे दिन चरवाहा रोज की तरह अपनी भेड़ों को पहाड़ी पर ले गया। जब उसकी भेड़ें चर रही थीं, तो उसने दूर से एक झाड़ी को हिलते देखा। ऐसे में वह अपनी सारी भेड़ें एक पेड़ के नीचे बुलाने लगा। तभी अचानक एक भेड़िये ने उसकी भेड़ों पर हमला कर दिया। यह देखकर चरवाहा चिल्लाया,

‘भेड़िया-भेड़िया! बचाओ। मेहरबानी करके मुझे बचाओ।” लेकिन इस बार गांव वाले उसकी मदद के लिए नहीं आए।
पहले तो भेड़िये ने चरवाहे की एक भेड़ मार डाली, फिर वह उस पर हमला करने के लिए लपका। यह देखकर चरवाहा भाग खड़ा हुआ, लेकिन भेड़िये ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। (Moral Stories in Hindi)
अगर उस चरवाहे ने गांव वालों के साथ ऐसा मजाक न किया होता, तो शायद भेड़िये से उसकी जान बच जाती।
▶ दो दोस्त और भालू ◀
एक बढ़ई और एक दर्जी आपस में दोस्त थे। एक दिन उन्होंने निश्चय । किया कि वे यात्रा पर जाएंगे और दुनिया के बारे में जानकारी हासिल करेंगे। जब दोनों दोस्त यात्रा पर निकले, तो उन्हें रास्ते में एक बूढ़ी महिला मिली। उसने दर्जी से विनती की,
“तुम मेरे लिए एक अच्छी-सी पोशाक तैयार कर दो। इसके बदले मैं तुम्हें शहद से भरे बारह बर्तन दूंगी।”
दर्जी ने कहा कि वह पोशाक तैयार कर देगा, लेकिन उसे शहद पहले देना होगा। उसने यात्रा से वापस लौटकर पोशाक सिलने का वादा किया। उस महिला ने हामी भर दी। अगले दिन वे एक ऐसे गांव में पहुंचे, जहां सभी लोग बुरी तरह भयभीत दिखाई दिए।

यह देखकर दोनों दोस्त गांव के मुखिया के पास गए और पूछा कि क्या वे गांव वालों की कोई मदद कर सकते हैं। मुखिया ने कहा, “पास वाले जंगल में एक भालू रहता है। वह अक्सर गांव वालों पर हमला करके उन्हें उठा ले जाता है। क्या तुम उस भालू को मार सकते हो? इसके लिए मैं तुम्हें सोने के बारह सिक्के दूंगा।”
बढ़ई ने कहा, “ठीक है, मैं आपकी मदद करूंगा, लेकिन आप मुझे सोने के सिक्के पहले दे दें। कल आपको भालू की खाल मिल जाएगी।” यह सुनकर मुखिया ने बढ़ई को खुशी-खुशी सोने के बारह सिक्के दे दिए।
उसी रात बढ़ई और दर्जी जंगल की ओर चल पड़े। जब वे घने जंगल से गुजर रहे थे, तभी अचानक वहां भालू आ गया। दर्जी तुरंत दौड़कर एक पेड़ पर चढ़ गया और भालू ने बढ़ई को पकड़ लिया।
उसी समय दर्जी ने पेड़ पर बैठे-बैठे शहद से भरे सभी बर्तन नीचे फेंक दिए। भालू ने बढ़ई को छोड़ दिया और शहद लेकर वापस चला गया। तब बढ़ई दर्जी से बोला, “भालू ने मेरे कान में कहा कि हमें भालू को पकड़ने के बाद ही उसे बेचना चाहिए।
” दर्जी इस बात को समझ गया कि उसे पोशाक सिलने के बाद ही शहद से भरा बर्तन लेना चाहिए था। दोनों दोस्तों को अपनी भूल का एहसास हो गया।
जब कोई काम करना हो, तो उससे मिलने वाले पुरस्कार की ओर ध्यान देने से पहले, काम में पूरा मन लगाना चाहिए। जब काम पूरा हो जाए, तो उससे होने वाले फायदे के बारे में सोचना चाहिए। दर्जी और बढ़ई ने कार्य से पूर्व ही उस फायदे को ले लिया था, जो कि गलत है।
▶ बेकरी और चूहे ◀
किसी छोटे से शहर में एक बेकरी थी। वहां बहुत से चूहे रहते थे। एक दिन एक चूहा दौड़ता हुआ आया। वह बुरी तरह हांफ रहा था। दूसरे चहे ने उससे पूछा, “क्या हो गया भाई ? तुम क्यों इतने परेशान लग रहे हो?”
पहले चूहे ने गहरी सांस ली और बोला, “इस बेकरी का मालिक एक बिल्ली ले आया है। वह लंबी मूंछों वाली बड़ी-सी बिल्ली है। उसकी आंखें हरे रंग की हैं और पंजे बहुत तेज हैं।”
यह सुनकर बेकरी में बैठे सारे चूहे कांप उठे। वे सोचने लगे, ‘अब हमें क्या करना चाहिए?’ सभी चूहे यह सोचकर परेशान हो गए कि अब उन्हें हमेशा डरकर रहना होगा और बिल्ली की निगरानी करनी होगी। यह बहुत गंभीर मामला था, जिस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत थी।
बहुत सोच-विचार करने के बाद अंतत: सबसे बूढे और सयाने चूहे को एक उपाय सूझ गया। उसने कहा, “हम बिल्ली के गले में एक घंटी क्यों नहीं बांध देते? इस तरह हमें पता चल जाएगा कि बिल्ली हमारे पास आ रही है।” यह सुनकर सभी चूहों ने तालियां बजाईं और चैन की सांस ली।

तभी एक चूहे ने कहा, “लेकिन बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन?” इस प्रश्न के निदान के लिए कोई भी चूहा आगे नहीं आया। फिर उन्होंने निश्चय किया कि बूढ़ा चूहा ही यह काम करें, क्योंकि यह उसी की सलाह थी। परंतु बूढ़े चूहे ने इस काम के लिए साफ इनकार कर दिया, क्योंकि वह बहुत बूढ़ा हो गया था।
बूढ़ा चूहा बोला, “भाइयो! मैं तो अपनी ओर से केवल सलाह ही दे सकता हूं। मैंने तुम लोगों को उपाय बता दिया। अब जवान चूहों को आगे आकर यह काम करना चाहिए।”
यह सुनकर जवान चूहे नाराज हो गए। उनमें से एक चूहा बोला, “दादा! देना तो दुनिया का सबसे आसान काम है। अगर हिम्मत है, तो आप सला बिल्ली के गले में घंटी बांधकर दिखाएं।
अगर ये काम इतना ही आसान था,तो इसे आपने अपनी जवानी में क्यों नहीं किया?”अब बूढ़ा चूहा कोई जवाब नहीं दे सका।
इसी तरह कुछ दिन बीत गए। कोई भी चूहा बिल्ली के गले में घंटी बांधने के लिए आगे नहीं आया। रोजाना बिल्ली एक-दो चूहों को मारकर खा जाती। सारे चूहे डरकर जीने लगे। आखिर में उन्होंने निश्चय किया कि वे दूसरी बेकरी में चले जाएंगे, ताकि चैन से जी सकें।
:- Moral Story In Hindi With Picture -:
▶ चालाक चोर ◀
बहुत समय पहले की बात है। एक चोर किसी शहर से गांव की ओर जा रहा था, तभी उसे एक सराय दिखाई दी। जब वह सराय गया, तो उसे याद आया कि उसके पास बिल्कुल पैसे नहीं थे, इसलिए वह वहां कुछ भी खा-पी नहीं सकता था।
तभी चोर ने सराय के मालिक को नया कोट पहने देखा। चोर ने सोचा, यह कोट दिखने में महंगा लगता है। अगर मैं इसे चुरा या हड़प लूं, तो अच्छे दामों में बेच सकता हूं।’
यह सोचकर चोर सराय के मालिक के पास जा बैठा और उससे बातें करने लगा। इसके बाद चोर ने उबासी ली और किसी भेड़िये की तरह आवाज निकालने लगा। सराय के मालिक ने हैरान होकर उससे पूछा, “तुम भेड़िये की तरह क्यों चिल्ला रहे हो? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?” चोर ने उत्तर दिया, “यह बात मैं तुम्हें अवश्य बताऊंगा कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं।

लेकिन पहले तुम मेरे कपड़े संभाल लो। कहीं ऐसा न हो कि मैं इन्हें फाड़ दूं। मुझे एक बीमारी है। मैं तीन बार उबासी लेने के बाद भेड़िया बन जाता हूं. फिर सामने वाले व्यक्ति पर हमला कर देता हूं।”
यह बात कहते हुए चोर ने दूसरी बार उबासी ली और भेड़िये की तरह आवाज निकाली। सराय का मालिक उठ खड़ा हुआ। वह भागने ही वाला था कि चोर ने उसका कोट पकड़ लिया और बोला, “अरे, तुम कहां भाग रहे हो। मेहरबानी करके मेरे कपड़े संभाल लो। कहीं मैं इन्हें फाड़ न दूं।”
फिर चोर ने तीसरी बार उबासी ली। इस बार उसने जोर से भेड़िये की आवाज निकाली। यह देखकर सराय का मालिक घबरा गया। वह किसी भी कीमत पर अपनी जान बचाना चाहता था। अत: उसने तुरंत अपना कोट उतारकर फेंक दिया और अपनी जान बचाकर भागा।
चालाक चोर ने वह महंगा कोट उठाया और मुस्कराते हुए सराय से बाहर निकल गया। इस तरह चोर ने बुद्धिमानी दिखाई और सराय के मालिक से वह महंगा कोट हथियाने में सफल हो गया।
▶ चूहा और शेर ◀
गर्मियों की दोपहर थी। एक चूहा जंगल में खेल रहा था। खेलते-खेलते वह शेर की गुफा के पास पहुंच गया। वहां उसने एक शेर को सोते हुए देखा। चूहा शेर को नजदीक से देखना चाहता था, इसलिए वह शेर के पास चला गया। शेर सो रहा था, इसलिए उसे डर नहीं लग रहा था। फिर वह छलांग लगाकर सोते हुए शेर पर चढ़ गया और उसके चेहरे पर दौड़ लगाने लगा। ऐसे में चूहे को बहुत मजा आ रहा था।
तभी अचानक शेर की आंख खुल गई। चूहे को ऐसा करते देख उसे बहुत गुस्सा आया। उसने चूहे को अपने पंजों में पकड़ लिया। चूहा डर गया और शेर से विनती करने लगा कि वह उसे छोड़ दे। लेकिन शेर ने कहा, “तुमने मुझे नींद से जगाया है। अब तुम्हें खा जाऊंगा।”
चूहे ने कहा, “हे शेर महाराज! आप तो जंगल के राजा हैं। आप मुझे माफ कर दें। अगर आज आप मुझे छोड़ देंगे, तो मैं भी आने वाले समय में आपकी मदद करूंगा।” शेर को चूहे पर तरस आ गया। उसने उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया।
एक दिन वह शेर जंगल में अपना भोजन तलाश कर रहा था। वह किसी हिरण को पकड़ना चाहता था। तभी अचानक वह शेर शिकारियों द्वारा बिछाए गए जाल में फंस गया। शिकारी आया और उसे एक मजबूत रस्सी द्वारा पेड़ से बांधकर चला गया। ऐसे में शेर को बहुत गुस्सा आया। वह जोर-जोर से गरजने लगा।

शेर ने जिस चूहे को तरस खाकर छोड़ दिया था, उसने भी शेर की आवाज सुनी। चूहा यह जानने के लिए चल दिया कि आखिर शेर इतना क्यों गरज रहा है। उसने शेर को दूर से ही देखकर पहचान लिया और तुरंत उसकी ओर दौड़ पड़ा।
फिर चूहा अपने मजबूत दांतों से शेर की रस्सी काटने लगा। कुछ ही देर में उसने सारी रस्सी कुतर दी और शेर आजाद हो गया।
चूहा शेर की मदद करके बहुत खुश हुआ। शेर ने उसकी जान बचाने के लिए उसे धन्यवाद दिया। इसलिए कहा जाता है कि सभी प्राणियों का अपना-अपना महत्व होता है, इसलिए हमें किसी को छोटा या हीन नहीं समझना चाहिए। छोटा प्राणी भी कभी-कभी बड़े से बड़ा काम कर देता है।
▶ मूर्ख गधा ◀
किसी छोटे से गांव में नमक का एक व्यापारी रहता था। वह रोजाना शहर से नमक खरीदने जाता था। ऐसे में उसका गधा बोरियां ढोने के लिए उसके साथ रहता था। व्यापारी गधे पर नमक की बोरियां लाद देता और वे नदी के किनारे चलते हुए गांव वापस पहुंच जाते।
गधे को बोरियां ढोना पसंद नहीं था, क्योंकि वह बहुत आलसी था। वह हमेशा काम से बचने के उपाय सोचा करता था। कुछ दिनों तक गधा यह नाटक करता रहा, मानो वह बीमार हो। लेकिन व्यापारी उसे अपने साथ शहर ले जाता रहा। उस पर गधे के नाटक का कोई असर नहीं हुआ।
एक दिन व्यापारी ने गधे पर नमक की दो बोरियां लादी और वे गांव की ओर चल पड़े। रास्ते में अचानक गधे का पैर फिसल गया और वह नदी में जा गिरा। इस कारण व्यापारी का नमक पानी में घुल गया।
जब व्यापारी ने गधे को पानी से बाहर खींचा, तो उसका बोझ काफी हल्का हो गया था। व्यापारी को उसे दोबारा शहर ले जाना पड़ा, ताकि फिर से नमक खरीदा जा सके। अब गधे को इस बात का पता चल गया कि अगर वह नदी में गिर जाया करे, तो उसका बोझ हल्का हो सकता है।

अगले दिन गधा जान-बूझकर नदी में फिसल गया। जब व्यापारी उसे खींचकर बाहर लाया, तो पानी में घुलने के कारण नमक का बोझ काफी हल्का हो गया था। इस तरह गधे ने कई बार किया। ऐसे में उस व्यापारी को गधे की चालाकी मालूम हो गई। वह समझ गया कि गधा जान-बूझकर नदी में रोजाना फिसल रहा था।
अगले दिन गधा फिर नदी में गिर गया। लेकिन जब व्यापारी ने उसे बाहर निकाला, तो उसका बोझ हल्का होने के बजाय भारी हो गया था। चालाक व्यापारी ने उस दिन बोरियों में नमक के बजाय रुई भर दी थी। रुई में पानी भरने से उसका वजन काफी बढ़ गया था।
अब गधे को ज्यादा भारी बोझ ढोना पड़ा। उसके लिए एक-एक पैर उठाना मुश्किल हो रहा था। वह अपने-आपको कोस रहा था कि उसने जान-बूझकर नदी में गिरने की योजना क्यों बनाई।आज गधे ने यह सबक सीख लिया था कि हमें अपने काम में कभी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए।
▶ सच्चा दोस्त ◀
किसी गांव में दो पक्के दोस्त रहते थे। वे हमेशा किसी शहर की सैर करने के बारे में सोचते रहते थे। एक दिन उन्होंने आपस में तय किया कि वे निकट के एक बड़े शहर की सैर करने जाएंगे। इसके लिए वे सारी तैयारी करके उस बड़े शहर की ओर चल दिए।
जब दोनों दोस्त एक घने जंगल में पहुंचे, तो उन्हें किसी जंगली जानवर के गुर्राने की आवाज सुनाई दी। ऐसे में वे डरकर कहीं छिपने की जगह खोजने लगे। वे जानते थे कि अगर उन्होंने शीघ्र ही कहीं छिपने की जगह नहीं ढूंढी, तो बड़ी मुसीबत में फंस जाएंगे।
जब दूसरी बार दोनों दोस्तों ने जंगली जानवर के गुर्राने की आवाज सुनी,तो उन्हें लगा कि वह काफी पास आ गया था। इस बार आवाज पहले से भी ज्यादा तेज थी। ऐसी स्थिति में एक दोस्त दौड़कर पेड़ पर चढ़ गया और पत्तियों के बीच छिप गया।

दूसरे दोस्त को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था, लेकिन उसके दोस्त ने उसकी कोई सहायता नहीं की। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे।। इधर वह जंगली जानवर उसके पास आता जा रहा था।
ऐसी स्थिति में दूसरा दोस्त तुरंत वहीं जमीन पर लेट गया और अपनी सांस रोक ली। उसने सुन रखा था कि जंगली जानवर मरे हुए मनुष्य पर हमला नहीं करते। अतः जमीन पर लेटकर और अपनी सांस रोककर उसने ऐसा दिखावा किया, मानो वह मर गया हो।
जब जंगली जानवर पास आया, तो दूसरे दोस्त को एहसास हुआ कि वह एक भालू था। वे दोनों अपनी-अपनी जगह दम साधे रहे। भालू लेटे हुए दोस्त के पास गया और उसे सूंघा। भालू को लगा कि वह मरा हुआ था। भालू मरा हुआ शिकार नहीं खाता, इसलिए वह वहां से चला गया।
भालू के जाने के बाद पेड़ पर बैठा दोस्त नीचे उतरा और दूसरे दोस्त से पूछा, भालू ने तुम्हारे कान में क्या कहा?” दूसरा दोस्त बोला, “भालू ने कहा कि ऐसे दोस्त से सावधान रहो, जो मुसीबत में साथ छोड़कर चला जाए।” पहला दोस्त समझ गया कि उसका दोस्त क्या कहना चाहता था। उसने आगे की यात्रा में अपने दोस्त का पूरा ध्यान रखा।
▶ धोखेबाज सांप ◀
पहाड़ी पर बसे किसी गांव में एक लकड़हारा अपनी पत्नी और एक छोटे बच्चे के साथ रहता था। वह रोजाना जंगल में लकड़ी काटने जाता और शाम को वापस आता। पहाड़ी पर चढ़ना बहुत मुश्किल काम था, इसलिए उसे घर पहुंचते-पहुंचते अक्सर देर हो जाती थी।
सर्दियों का मौसम था। एक दिन जब लकड़हारा अपने घर वापस जा रहा था, तो बर्फ गिरने लगी। बर्फबारी के बीच पहाड़ी पर चढ़ना मुश्किल काम था, फिर भी वह जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाने लगा।
तभी लकड़हारे को रास्ते में एक सांप पड़ा दिखाई दिया। वह बिल्कुल बेजान लग रहा था। जब लकड़हारे ने उसे गौर से देखा, तो पता अभी उसमें जान बाकी थी। वह उसे अपने साथ घर ले आया।

लकड़हारे की पत्नी ने देखा कि सांप को ठंड लग गई थी। उसने सांप को कंबल में लपेटा और उसे आतिशदान के पास रख दिया। फिर उन्होंने कोई दवा सांप के शरीर पर लगाई, ताकि उसकी तबीयत में सुधार हो सके।
धीरे-धीरे सर्दी बढ़ रही थी, इसलिए लकड़हारे ने स्वेटर पहना और रजाइ ओढ़कर बैठ गया। उसकी पत्नी ने उसे पीने के लिए गरम सूप दिया, फिर वह खाना बनाने के लिए रसोईघर में चली गई। लकड़हारा रजाई आढ़ बढा था और उसका बच्चा पास ही कुछ खिलौनों से खेल रहा था।
जब सांप की तबीयत संभली, तो वह भूख और थकान महसूस करने लगा। उसे पता नहीं था कि वह कहां था। तभी उसने बच्चे को खेलते देखा और सोचा, ‘अरे वाह! आज तो बड़ा अच्छा दिन है। मैं एक कंबल में लिपटा हुआ हूं और मेरी दावत का बढ़िया इंतजाम हो गया है।’
यह सोचकर सांप धीरे-धीरे रेंगते हुए बच्चे की ओर बढ़ा। जब लकड़हारे ने सांप को बच्चे के पास जाते हुए देखा, तो वह समझ गया कि सांप क्या चाहता है। ऐसे में लकड़हारे को बहुत गुस्सा आया। उसने तुरंत अपनी कुल्हाड़ी उठाई और उस धोखेबाज सांप को खत्म कर दिया।
वास्तव में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो उपकार का बदला अपकार से देते हैं। हमें ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए और उनके कार्यकलापों पर हमेशा अपनी निगाह जमाए रखनी चाहिए। अगर हम ऐसा नहीं करते, तो हानि की संभावना होती है।
▶ चालाक कौआ ◀
गर्मियों की दोपहर थी। एक कौआ आकाश में उड़ता चला जा रहा था। वह बहुत प्यासा था, लेकिन उसे कहीं भी पानी नहीं दिखाई दे रहा था।
इधर-उधर उड़ते समय कौए ने देखा कि तालाब और झील सूख गए थे। इधर काफी दिनों से बारिश भी नहीं हुई थी, इसलिए कहीं भी पानी का नामोनिशान नहीं था। कौआ अपने दोस्तों से मिलने गया। वे लोग भी बहुत प्यासे थे। उनके पास अपने दोस्त को देने के लिए पानी नहीं था।
ऐसी स्थिति में कौए ने निश्चय किया कि वह दूसरी दिशा में उड़र पानी की तलाश करेगा।जब वह कुछ दूर उड़कर गया, तो उसने जमीन पर पड़ा एक घड़ा देखा। कौए ने घड़े के पास जाकर झांका, तो उसमें उसे कुछ पानी दिखाई दिया। ऐसे में उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

कौए ने घड़े में अपनी चोंच डाली, लेकिन वह पानी तक नहीं पहुंच सकी। घड़े में पानी बहुत कम था।उसने घड़े को टेढ़ा करके झुकाना चाहा, ताकि पानी नजदीक आ सके। लेकिन वह घड़ा बहुत भारी था। वह उसे अकेले नहीं झुका सकता था।
ऐसी स्थिति में कौआ बहुत निराश हो गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। तभी उसने अपने आसपास निगाह दौड़ाई, तो उसे कुछ कंकड़ पड़े दिखाई दिए। उन कंकड़ों को देखकर कौए के दिमाग में एक उपाय कौंधा।
वह अपनी चोंच से एक-एक कंकड़ उठाकर घड़े में डालने लगा। ऐसे में पानी ऊपर आने लगा। कौए ने सोचा, ‘पानी तो ऊपर आ रहा है। मुझे इसमें थोड़े और कंकड़ डालने चाहिए, ताकि पानी का स्तर ऊपर आ जाए और मैं इसे पी सकूं।”
यह सोचकर कौआ घड़े में तब तक कंकड़ डालता रहा, जब तक पानी उसकी चोंच तक नहीं आ गया। पानी का स्तर ऊपर देखकर उसने चैन की सांस ली और जी भरकर पानी पिया।
गर्मियों का तेज सूरज सिर पर चमक रहा था। कौए ने एक पेड़ पर कुछ देकर बैठकर आराम किया, फिर अपने घर की ओर वापस चला गया।वह अपनी बुद्धिमानी से पानी पीने में सफल हो गया था। (Moral Stories in Hindi)
▶ लाचार शेर ◀
जंगल का राजा शेर बूढ़ा हो गया था। वह अपनी गुफा के सामने बेजान होकर जमीन पर पड़ा था। उसके शरीर में अनेक बीमारियां हो गई थीं। वह सारी जिंदगी जंगल का राजा रहा। सभी जानवर उसके आगे सिर झुकाते थे। लेकिन अब वह अपनी गुफा के बाहर आखिरी सांसे ले रहा था।
जब शेर अस्वस्थ अवस्था में जमीन पर लेटा था, तभी एक जंगली सूअर उधर से गुजरा। जंगली सूअर हमेशा शेर से डरता आया था। आज जब उसने शेर को इस तरह लाचार और अस्वस्थ हालत में पड़ा देखा, तो उसे अपनी ताकत दिखाने का मौका मिल गया।
“तुम हमेशा बलशाली शेर रहे और हमारी गिनती कमजोरों में होती थी। अब देखते हैं कि किसमें कितनी ताकत है।” यह कहते हुए जंगली सूअर अपने तेज दांतों से शेर पर हमला कर दिया। जंगली सूअर ने उस शेर को बुरी तरह घायल करने दिया। जंगली सूअर को वह समय याद आ गया था,जब शेर ने उसे जंगल से बहुत दूर भागने पर मजबूर कर दिया था।

शेर अपनी गुफा के बाहर दर्द से तड़पता और कराहता रहा, लेकिन उसकी मदद करने के लिए कोई नहीं आया। काफी देर बाद उधर से एक बैल गुजरा। उसने बूढ़े शेर को घायल अवस्था में कराहते हुए देखा। तभी उसे वे दिन याद आ गए, जब शेर जंगल पर राज करता था और सारे जानवर उससे डरते थे। लेकिन अब बैल भी अपनी ताकत दिखाना चाहता था। उसने भी शेर पर अपनी सींगों से हमला कर दिया।
परिणाम स्वरूप बूढ़े शेर के लिए दर्द सहना मुश्किल हो गया। वह सहायता के लिए चिल्लाने लगा। तभी एक गधा उधर आया। उसने शेर के कराहने और चिल्लाने की आवाज सुनी।
गधे ने पास जाकर देखा कि शेर के शरीर से खून निकल रहा था। गधे ने सोचा, ‘यह हम सबको डराता था। अब इसकी बारी है। इसे यह सब सहन करना होगा। यह सोचकर उसने भी शेर पर दुलत्ती झाड़ दी।
बूढ़ा-घायल शेर अपनी अंतिम सांसें गिन रहा था। उसने मन ही मन में सोचा, ‘आज मैं कमजोर हो गया हूं, तो सभी जानवर मुझ पर हमला कर रहे हैं। कमजोर दिल वालों की यही निशानी होती है।’ (Moral Stories in Hindi)
▶ स्वार्थी लोमड़ ◀
एक दिन एक लोमड़ जंगल में इधर-उधर घूम रहा था। गर्मियों की दोपहर थी। सूरज आसमान में आग उगल रहा था। लोमड़ को बहुत तेज प्यास लगी थी, मगर उसे कहीं भी पानी नहीं मिल पाया।
काफी देर भटकने के बाद लोमड़ को एक कुआं दिखाई दिया। उसने कुएं में झांका। अंदर पानी देखकर वह बहुत खुश हुआ। लेकिन उसे एहसास हुआ कि कुएं में पानी का स्तर बहुत नीचे था। उसने कुएं की मुंडेर पर अपने पैर टिकाए और झुककर पानी पीने लगा।
तभी कुएं की मुंडेर का पत्थर हिला और लोमड़ पानी में जा गिरा। अब वह सोचने लगा, ‘मैं इस कुएं से बाहर कैसे निकल सकता हूं?”
कुछ देर बाद एक बकरे ने कुएं में झांका। बकरे ने लोमड़ को कुएं में देखकर पूछा, “प्यारे लोमड़, कैसे हो? तुम यहां क्या कर रहे हो?”

लोमड़ एक कहानी बनाकर बोला, “मैं कुएं के ठंडे पानी का आनंद लेना चाहता था, इसलिए यहां चला आया। बाहर बहुत गर्मी है। कहीं पानी
का नामोनिशान तक नहीं है। ऐसे में तुम भी क्यों नहीं अंदर आ जाते?”
बकरे ने सोचा कि ठंडा पानी पीने और गर्मी से बचाव करने के लिए कुएं में जाना उचित है। यह सोचकर बकरा कुएं के अंदर कूद गया। उसने भी ठंडे कुएं का आनंद लिया और पेट भरकर पानी पिया। इसके बाद बकरे ने सोचा कि अब बाहर निकलना चाहिए, लेकिन वह अपने-आप बाहर नहीं निकल पा रहा था।
तब लोमड़ ने हल सुझाया, “मैं तुम्हारी पीठ पर पांव रखकर बाहर निकल जाता हूं। बाहर पहुंचने के बाद मैं तुम्हें ऊपर खींच लूंगा।”
बकरे ने लोमड़ की बात मान ली। स्वार्थी लोमड़ बकरे की पीठ पर पैर रखकर कुएं से बाहर निकला और अपने घर की ओर चल दिया। बेचारा बकरा उसे आवाजें लगाता रह गया।
इसीलिए कहा गया है कि स्वार्थी मित्रों से सदैव दूर रहना चाहिए। अगर वे किसी प्रकार की चाटुकारिता करें, तो उनके भुलावे में कभी नहीं आना चाहिए। लेकिन मूर्ख लोग अक्सर उनकी चाटुकारिता के शिकार हो जाते हैं और अपना नुकसान कर बैठते हैं। (Moral Stories in Hindi)
▶ शेर, लोमड़ और गधा ◀
एक लोमड़ और एक गधा बहुत गहरे दोस्त थे। वे जंगल में अन्य जानवरों के साथ रहते थे। सभी जानवर आपस में मिलकर खेलते और अपना भोजन बांटकर खाते। लेकिन जब जंगल का राजा शेर अपनी गुफा से बाहर आता, तो वे सब भागकर अपने घरों में छिप जाते।
जंगल के सभी जानवर शेर से डरते थे। उसके सामने कोई भी जानवर घर से नहीं निकलता था। लेकिन अब उनका भोजन खत्म हो रहा था। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें।
एक दिन गधे ने लोमड़ से कहा, “प्रिय लोमड़! हम लोग शेर से कब तक डरते रहेंगे? हमें जंगल में जाकर भोजन की तलाश करनी चाहिए। लेकिन हमें एक दूसरे का ध्यान अवश्य रखना होगा।” लोमड़ ने कहा, “हां प्यारे गधे!

हमें एक दूसरे की रक्षा करनी होगी। अगर हम साथ होंगे, तो कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा।” गधे ने लोमड़ की बात मान ली और वे शाम को जंगल में अपना भोजन ढूंढ़ने के लिए चल दिए।
कुछ ही देर में उनका सामना शेर से हो गया। वे दोनों डर गए। लेकिन लोमड़ ने ताकतवर होने का दिखावा किया और शेर के पास जाकर धीरे से बोला, “प्यारे शेर महाराज! मैं गधे को पकड़ने में आपकी मदद करूंगा, लेकिन आपको यह वादा करना होगा कि आप मुझे जिंदा वापस जाने देंगे।”
शेर ने हामी भर दी। लोमड़ गधे के पास गया और बोला, “मैंने शेर से बात कर ली है। वह तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। बस वही करना, जो मैं कहूं।” फिर गधे ने वही किया, जो उसे लोमड़ी ने करने को कहा था। वह एक गहरे गड्ढे में गिर गया।
लोमड़ ने सोचा कि अब उसे भाग जाना चाहिए। लेकिन जब वह वहां से भागने लगा, तो उसे शेर ने पकड़ लिया और उसका काम तमाम कर दिया। पहले उसने लोमड़ को खाया, फिर गधे को भी मारकर खा गया।
वस्तुतः हमें स्वार्थी लोगों से सदैव दूरी बनाए रखनी चाहिए और उन पर कड़ी निगाह रखनी चाहिए। ऐसे लोग कभी न कभी अवश्य धोखा देते हैं और हमारा अहित कर बैठते हैं। लेकिन कभी-कभी वे अपना भी नुकसान करके अपने अंजाम को पहुंच जाते हैं। (Moral Stories in Hindi)
▶ डरपोक शिकारी ◀
किसी जंगल के छोर पर एक गांव था। गांव में अक्सर खतरनाक जानवर आ जाते थे, मगर गांव वाले मिलकर उन्हें भगा देते थे।
एक रात गांव के सभी लोग सो रहे थे। तभी एक शेर गांव में घुस आया। उसने देखा कि गांव वालों के घरों में भेड़ों और मुर्गियों के बहुत से बच्चे थे।
उसने सोचा, ‘मुझे काफी दिनों तक शिकार खोजने नहीं जाना पड़ेगा। यहां तो मेरे लिए बहुत-सा भोजन है। मैं यहां रोज आकर बढ़िया दावत कर सकता हूं।’ इस तरह शेर रोजाना गांव में जाने लगा।
रोजाना शेर के आने से गांव वालों को अपने जानवरों की चिंता सताने लगी। वे गांव के एक सयाने आदमी के पास गए और उससे इस मुसीबत से बचाव करने को कहा। सयाना आदमी बोला कि हमें किसी शिकारी को बुलाना चाहिए, ताकि वह शेर को मार सके। गांव का शिकारी बहादुर नहीं था। वह जंगल में जाना नहीं चाहता था। लेकिन वह गांव वालों के सामने यह भी नहीं दर्शाना चाहता था कि उसे डर लग रहा है।

एक दिन दोपहर में वह शिकारी उस शेर को मारने के लिए जंगल की ओर रवाना हुआ। गांव के सभी लोगों ने उसे अपनी शुभकामनाएं दीं। कुछ ही देर बाद वह घने जंगल के बीच पहुंच गया, लेकिन वहां उसे शेर कहीं भी दिखाई नहीं दिया।
तभी शिकारी ने एक लकड़हारे को देखा और उसके पास जाकर बोला, भाई, क्या तुमने यहां किसी शेर के पैरों के निशान देखे हैं?” लकड़हारा बोला, “मैंने तो पैरों के कोई निशान नहीं देखे। लेकिन मैं तुम्हें शेर की गुफा दिखा सकता हूँ। तुम वहां जाकर उसे मार सकते हो।”
यह सुनकर शिकारी डर गया और बोला, “मैं शेर से नहीं मिलना चाहता। मैं तो केवल उसके पंजों के निशान देखना चाहता था।’ यह कहकर शिकारी गांव की ओर वापस भाग गया।(Moral Stories in Hindi)
▶ बैल और मच्छर ◀
किसी गांव में मजबूत सींगों और बलिष्ठ शरीर वाला एक बैल रहता था। वह बहुत वफादार और मेहनती था। उसका मालिक उससे बहुत खुश रहता था। वह उसे समय पर खाना देता और उसका पूरा ख्याल रखता। बैल भी अपना सारा काम समय से पूरा करता था।
एक दिन बैल ने अपना काम पूरा किया, उसके बाद वह आराम करने के लिए कोई जगह ढूंढने लगा। उस दिन उसने कड़ी मेहनत की थी। तभी बैल ने एक पेड़ देखा। उसने सोचा, ‘आज का दिन बहुत मेहनत करने वाला रहा। बेहतर होगा कि मैं इस पेड़ के नीचे बैठकर कुछ देर आराम करूं।’इस तरह बैल उस पेड़ के नीचे बैठकर जुगाली करने लगा।
तभी उधर से एक मच्छर गुजरा। वह भी आराम करने के लिए कोई जगह खोज रहा था। उसे अपने लिए किसी छायादार जगह की तलाश थी। उसने बैल के मजबूत सींगों को देखकर सोचा, ‘यह जगह आराम करने के लिए बहुत अच्छी रहेगी, लेकिन मैं बैल को परेशान नहीं करूंगा। वह भी काफी थका हुआ लग रहा है।’
यह सोचकर मच्छर उस बैल की एक सींग पर बैठ गया और कुछ ही देर बाद उसे नींद आ गई। लेकिन बैल को अपनी सींग पर मच्छर के बैठने का बिल्कुल पता नहीं चला।

जब मच्छर की नींद खुली, तो उसने वापस जाने का विचार किया। मच्छर ने देखा कि बैल अब भी जुगाली कर रहा था। उसने भिन-भिन करते हुए बैल से जाने की इजाजत मांगी।
मच्छर बोला, “प्यारे बैल! आज तुम्हारे सींगों पर बैठकर मुझे बहुत आनंद आया। मैं थका हुआ था। कुछ देर आराम करने से अब बड़ा सुकून महसूस कर रहा हूँ। नींद पूरी करने के बाद मुझे उड़ना अच्छा लगता है। क्या अब मैं यहां से जा सकता हूँ?”
मच्छर को देखकर बैल हैरान हो गया। उसने कहा, “प्यारे मच्छर! मुझे तो यह पता ही नहीं चला कि तुम यहां थे। मुझे तुम्हारे आने-जाने से कोई भी फर्क नहीं पड़ता।”
यह सुनकर मच्छर ने बैल से विदा ली और अपने घर की ओर चल दिया। बैल फिर से जुगाली करने लगा। (Moral Stories in Hindi)
▶ लालची कुत्ता ◀
बहुत समय पहले की बात है। किसी गांव में एक लालची कुत्ता रहता था। वह अपने सिवा किसी के बारे में नहीं सोचता था। वह हमेशा अपने लिए ज्यादा चीजें पाने की कोशिश में लगा रहता था। चाहे उसके पास सब कुछ क्यों न हो, फिर भी उसे दूसरों की चीजें देखकर जलन होती थी।
उसके पास जो नहीं होता, वह उसे दूसरों से छीनना चाहता था। कई बार उसके मित्रों ने उसे समझाया कि तुम अपनी आदतों में सुधार करो, लेकिन वह उनकी बातें एक कान से सुनता और दूसरे कान से निकाल देता।
एक दिन उस कुत्ते को कहीं से मांस का एक टुकड़ा मिल गया। ऐसे में वह बहुत खुश हुआ। वह उसे कहीं अकेले बैठकर आराम से खाना चाहता था। वह उस टुकड़े को किसी के साथ बांटना नहीं चाहता था।
अंत: कुत्ते ने सोचा, ‘मुझे पुल के दूसरी ओर मैदान में बैठकर यह मांस खाना चाहिए। इस तरह कोई मुझे देख भी नहीं सकेगा।’ यह सोचकर वह कुत्ता पुल की ओर चल दिया। पुल से गुजरते समय उसे नदी के पानी में एक दूसरा कुत्ता दिखाई दिया। उस कुत्ते के मुंह में भी मांस का एक बड़ा-सा टुकड़ा था।
दूसरे कुत्ते को देखकर उसे गुस्सा आ गया। वह खुद से बोला,”किसी दूसरे कुत्ते के पास मुझसे बड़ा मांस का टुकड़ा कैसे हो सकता है। मुझे अभी उससे छीनना होगा।”

कुत्ते ने लालच के कारण यह ध्यान नहीं दिया कि वह नदी के पानी में अपनी परछाईं देख रहा था। वह दूसरे कुत्ते पर झपट्टा मारने के लिए नदी के पानी में कूद गया, ताकि उसका मांस का टुकड़ा छीन सके। इसी चक्कर में उसका अपना मांस का टुकड़ा भी पानी में गिरकर बहने लगा।
अब वह कुत्ता नदी में अपने हाथ-पैर चलाने लगा, लेकिन उसे दूसरा कुत्ता नहीं दिखाई दिया। वह बहुत निराश हो गया। पानी में कोई दूसरा कुत्ता या मांस का बड़ा टुकड़ा नहीं था।
ऐसे में कुत्ते ने खुद को कोसा कि लालच के कारण उसका अपना मांस का टुकड़ा भी हाथ से निकल गया। जब वह तैरकर नदी के किनारे पहुंचा, तो देखा कि मांस का टुकड़ा पानी में बहा जा रहा था। (Moral Stories in Hindi)
▶ कबूतर और कांच ◀
गर्मियों की एक दोपहर थी। एक कबूतर आकाश में उड़ रहा था। उसे इधर-उधर उड़ान भरते हुए कई घंटे हो गए थे। ऐसे में उसे प्यास लग गई। लेकिन दूर-दूर तक पानी का नामोनिशान नहीं था।
सूरज की किरणें आंखों पर पड़ने के कारण कबूतर को धरती पर कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। प्यास के मारे उसका गला सूख रहा था। लेकिन कबूतर को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था कि वह अपनी प्यास कैसे बुझाए। गर्मी की वजह से उसे बहुत परेशानी महसूस हो रही थी।
तभी कबूतर को कुछ ही दूरी पर एक होर्डिंग दिखाई दिया। कांच के उस होर्डिंग पर गिलास में रखे शरबत और प्लेट में रखे भोजन का चित्र बना था। यह एक ऐसी दुकान का होर्डिंग था, जो खाने-पीने का सामान बेचता था। लेकिन कबूतर को सिर्फ पानी ही दिखाई दिया। उसे यह एहसास नहीं हुआ कि वह पानी नहीं, पानी की तस्वीर थी।
पानी देखते ही कबूतर ने अपने पंख फैलाए और सीधे उसी ओर उड़ान भरी। अब उसके पंखों में जान आ गई थी। वह तुरंत वहां पहुंचना चाहता था।अब कबूतर यह सपना देख रहा था कि कुछ ही देर में उसके गले से ठंडे पानी की बूंदें उतर रही होंगी।

कबूतर बहुत तेजी से उड़ रहा था। अचानक उसका सिर कांच के उस होर्डिंग से जा टकराया। जब वहां से गुजरते हुए एक राहगीर ने कुछ आवाज सुनी, तो उसने ऊपर होर्डिंग की तरफ देखा। कबूतर होर्डिंग से टकराकर घायल अवस्था में नीचे गिर रहा था।
कबूतर को बुरी तरह चोट आई थी। उसके पंख टूट गए थे और वह धरती पर बेजान पड़ा था। वह राहगीर बहुत दयालु था। उसने कबूतर को उठाकर उसके सिर पर थोड़ा पानी डाला। फिर उसे एक पेड़ के नीचे छाया में ले गया। जब तक कबूतर उड़ने लायक नहीं हुआ, तब तक वह राहगीर उसकी सेवा करता रहा।
अब कबूतर को एहसास हो गया था कि उसे सावधान रहना चाहिए। किसी भी चीज को देखते ही उसकी ओर अंधाधुंध भागना अच्छी बात नहीं होती। पहले हमें उस वस्तु के बारे में ठीक से पता कर लेना चाहिए, फिर उस ओर बढ़ना चाहिए। ऐसा न करने पर स्वयं अपनी हानि हो सकती है। (Moral Stories in Hindi)
▶ चक्की-मालिक और गधा ◀
किसी चक्की-मालिक और उसके बेटे के पास एक बूढ़ा गधा था। अब वह गधा कोई काम नहीं कर पाता था। इस कारण उन्होंने निश्चय किया कि वे उसे शहर में ले जाकर बेच देंगे।
अगले दिन चक्की-मालिक और उसका बेटा गधे को अपने साथ लेकर शहर की ओर चल पड़े। अभी वे कुछ ही दूर गए थे कि उन्होंने एक महिला को दूसरी महिला से कहते हुए सुना, “जरा इनको देखो! इनके पास एक गधा है, फिर भी ये पैदल चल रहे हैं। ऐसे में गधा रखने से क्या फायदा?”
उस महिला की बात सुनकर चक्की-मालिक ने अपने बेटे को गधे पर बिठा दिया और स्वयं पैदल चलने लगा।
जब वे एक गांव से गुजरे, तो उन्होंने कुछ लोगों को आपस में खुसर-फुसर करते सुना, ” अरे देखो! बेटा कितना जालिम है। वह तो मजे से गधे की सवारी कर रहा है और उसका बाप पैदल चल रहा है। इस लड़के को शर्म आनी चाहिए।” उन लोगों की बातें सुनकर बेटे को अपनी गलती का एहसास हुआ।
वह गधे से उतरा और पिता को गधे पर बैठने के लिए बोला। चक्की-मालिक बेटे की बात मानते हुए गधे पर बैठ गया। लेकिन वे लोग अभी कुछ ही दूर गए थे कि चक्की-मालिक का एक पुराना मित्र मिल गया।
उसने चक्की-मालिक से कहा, “अरे यार! बेटा पैदल चल रहा है और तुम गधे की सवारी कर रहे हो? गधा तो मजबूत लगता है। तुम दोनों ही इसकी सवारी क्यों नहीं करते?” यह सुनकर चक्की-मालिक ने अपने मित्र की सलाह मान ली और बेटे को भी गधे पर बिठा लिया।

वे लोग आधा रास्ता तय कर चुके थे और अब एक दूसरे गांव से गुजर रहे थे। तभी एक लड़के ने उन्हें देखकर कहा, “देखो, बेचारे गधे की हालत देखो! दो लोग उसकी सवारी कर रहे हैं। ये लोग कितनी जालिम है?” यह सुनकर चक्की-मालिक और उसके बेटे को अपने गधे पर बहुत तरस आया। उन्होंने गधे की टांगें एक मोटे डंडे से बांधीं और उसे कंधे पर उठाकर.
चल पड़े। यह देखकर गांव वाले हंसने लगे। ऐसे में गधा भी बहुत परेशान हो रहा था, अतः उसने खुद को रस्सी से छुड़ाना चाहा। वह बार-बार हिल-डुल रहा था। तभी एक पुल पार करते समय अचानक वह नदी में जा गिरा।
इस प्रकार चक्की-मालिक और उसके बेटे को अपने गधे से हाथ धोना पड़ा। बेचारे बाप-बेटे खाली हाथ घर वापस लौट गए। अतः हमें किसी दूसरे की बातों पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए।(Moral Stories in Hindi)
▶ बैलों का दुख ◀
किसी गांव में एक लकड़हारा रहता था। वह सर्दी, गर्मी और बरसात-हर मौसम में पेड़ों को काटने जंगल में जाता था। फिर कटे हुए पेड़ों को अपनी बैलगाड़ी में लादकर शहर में बेच आता था।
गर्मियों की एक दोपहर थी। धूप बहुत तेज हो चुकी थी। लकड़हारे ने बैलगाड़ी में कटे हुए पेड़ लादे और शहर की ओर चल दिया। रास्ता बहुत खराब था। जगह-जगह सड़क टूटी हुई थी।
ऐसी स्थिति में बैलों के लिए सड़क पर चलना मुश्किल हो रहा था। दोनों बैल उस गाड़ी को नहीं खींच पा रहे थे। वे थक जाने के बावजूद अपने मालिक का हुक्म मानकर धीरे-धीरे चलते जा रहे थे। उन्हें गर्मी की वजह से प्यास भी महसूस होने लगी थी।

बैलों ने सुबह जो चारा आदि खाया था, वह अब तक हजम हो गया था। इस कारण उन्हें भूख और थकान महसूस हो रही थी। मगर वे विवश थे। भला क्या करते?
बैलगाड़ी हिचकोले खा रही थी, जिसके कारण उसमें रखे कटे पेड़ इधर-उधर लुढ़क रहे थे। पेड़ों को झटके लग रहे थे, इसलिए वे लगातार बैलों से शिकायत कर रहे थे। उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा था।
पेड़ बोले, “क्या तुम आराम से नहीं चल सकते? तुम हिचकोले खा रहे हो और हम गाड़ी में इधर-उधर लुढ़क रहे हैं। हमें बहुत परेशानी उठानी पड़ रही है, अत: ठीक से चलो।”
यह सुनकर बैलों को बहुत दुख हुआ। उन्होंने सोचा, ‘सारी मेहनत तो हम कर रहे हैं और ये पेड़ बड़े मजे से गाड़ी की सवारी कर रहे हैं। फिर भी इन्हें परेशानी महसूस हो रही है।’
थोड़ी दूर जाने के बाद पेड़ फिर शिकायत करने लगे। यह सुनकर बैल वहीं रुक गए और बोले, “पेड़ो! अब अपना रोना-धोना बंद करो। हम कितनी कड़ी मेहनत कर रहे हैं। खराब सड़क के कारण हमारे पैर छिल रहे हैं। तेज गर्मी की वजह से हमें थकान महसूस हो रही है। हम लोग भूखे और प्यासे भी हैं। फिर भी चले जा रहे हैं।
लेकिन तुम लोग मजे से सवारी कर रहे हो, फिर भी तुम्हें परेशानी हो रही है? क्या तुम्हें ऐसा कहना शोभा देता है? क्या तुम्हें दूसरों का दर्द महसूस नहीं होता?”
बैलों की बात सुनकर पेड़ बहुत शर्मिंदा हुए। उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और वे बाकी रास्ते में कुछ नहीं बोले।
▶ भेड़िये की परछाईं ◀
किसी जंगल में एक शेर रहता था। वह जंगल का राजा था। सारे जानवर उसकी आज्ञा का पालन करते थे। शेर बहुत ताकतवर था। वह जब भी चाहता, किसी जानवर को मार डालता था।
एक भेड़िया भी उसी जंगल में रहता था। वह जंगल का राजा बनना चाहता था। भेड़िया चाहता था कि सारे जानवर उसके आगे सिर झुकाएं।लेकिन उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता था।
गर्मियों की एक दोपहर थी। भेड़िया जंगल में इधर-उधर घूम रहा था। उसके सिर पर सूरज चमक रहा था। गर्मी काफी बढ़ गई थी। तभी उसे एक बड़ी-सी परछाईं दिखाई दी।

एक पल के लिए भेड़िया डर गया। उसने सोचा कि इतनी बड़ी परछाईं किस जानवर की हो सकती है। तभी उसे संदेह हुआ कि कोई जानवर उसका पीछा कर रहा है। अपने शक का निवारण करने के लिए उसने अपने आसपास देखा, मगर उसे कोई नहीं दिखाई दिया। वह फिर आगे बढ़ने लगा।
तभी अचानक भेड़िये को ख्याल आया कि यह तो उसकी अपनी परछाईं है। लेकिन यह परछाईं बहुत बड़ी दिख रही है। क्या वह सचमुच इतना बड़ा और ताकतवर है। फिर वह धीरे-धीरे बड़बड़ाने लगा, “हां, मैं ऐसा ही हूं। देखो, यह मेरी परछाईं है। अब में शेर से भी अधिक ताकतवर हूं।” भेडिया अपनी परछाईं देखकर घमंड से भरता चला जा रहा था।
तत्पश्चात् भेड़िया सीधे शेर की गुफा की ओर चल दिया, ताकि उसे मार सके। उसने सोचा कि वह शेर को मारकर जंगल का राजा बन जाएगा। शेर की गुफा के बाहर पहुंचकर उसने शेर को पुकारा “ओ शेर! यह देख, खड़ा है। मैं तुम्हें मारने आया तुम्हारी गुफा के बाहर एक ताकतवर भेड़िया हूँ। अगर तुझमें हिम्मत है, तो बाहर निकल।”
यह सुनकर शेर को बहुत गुस्सा आया। वह गुफा से बाहर निकलकर भेड़िये पर झपटा और उसे मार डाला।
जब भेड़िया आखिरी सांसें गिन रहा था, तो उसने सोचा, ‘परछाईं तो धोखा देती है। मुझे अपनी असली ताकत का एहसास होना चाहिए था। अपनी मूर्खता के कारण ही मैंने अपनी जान गंवा दी।’
वास्तव में हमें अपने असली बल का अंदाजा लगाने के बाद ही कोई कदम उठाना चाहिए। लेकिन जो ऐसा नहीं करता, उसका अंजाम उस भेडिये जैसा होता है।(Moral Stories in Hindi)
▶ निर्दयी किसान ◀
बहुत समय पहले की बात है। किसी गांव में एक किसान रहता था। वह अपने खेत में सब्जियां उगाता था और उन्हें पास के एक शहर में जाकर बेच आता था। इस प्रकार वह बड़े आराम से अपना जीवन बिता रहा था।
एक दिन किसान ने निश्चय किया कि वह पहले से ज्यादा सब्जियां उगाएगा। फिर वह कठोर परिश्रम करके बहुत-सी सब्जियां उगाने लगा। लेकिन वह उन्हें अकेले शहर में नहीं ले जा सकता था, इसलिए उसने एक गधे वाली छकड़ा गाड़ी खरीद ली।
उस गधे को किसान के साथ काम करने में बड़ा मजा आता था। किसान भी उसकी अच्छी तरह देखभाल करता था और उसके काम को सराहता था।लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, वैसे-वैसे किसान ने अपने गधे की देखभाल करना बंद कर दिया।

वह उसे खाने के लिए बहुत कम भोजन देता और उसके साथ बेरहमी से पेश आता।ऐसी स्थिति में गधा स्वयं को बहुत असहाय और कमजोर महसूस करने लगा। अब उसे किसान के साथ काम करना अच्छा नहीं लगता था।
एक दिन गधे ने किसान को सबक सिखाने का विचार किया। उसने मन ही मन में सोचा, ‘यह किसान अब मेरे साथ बहुत बुरा व्यवहार करने लगा है, जबकि में उसका सारा काम करता हूँ। उसे जरूर सबक सिखाना चाहिए, ताकि वह मेरी इज्जत कर सके।’
अगले दिन किसान गधे को लेकर शहर की ओर जा रहा था। आगे उन्हें पर्वत के साथ-साथ चल रही एक संकरी सड़क से गुजरना था। उस सड़क के दूसरी ओर एक गहरी खाई थी। गधे ने खाई की तरफ झुककर चलना शुरू कर दिया, ताकि उसके छकड़े में रखी सब्जियां खाई में गिर जाएं।
ऐसे में किसान को काफी नुकसान होता और उसकी अक्ल ठिकाने आ जाती। गधा खाई की ओर झुककर चल ही रहा था, तभी अचानक उसका पैर फिसला और वह स्वयं खाई में गिरने लगा। तब किसान ने लपककर उसकी पूंछ पकड़ ली। लेकिन गधा तो किसान को सबक सिखाना चाहता था।
ऐसे में वह भूल गया कि उसकी अपनी जान भी खतरे में है। किसान उस गधे की चालाकी समझ गया और बोला, “मुझे तो सबक मिल ही गया है, लेकिन अब तुम्हें भी अपनी जान गंवानी पड़ेगी।” इतना कहकर किसान ने गधे की पूंछ छोड़ दी और गधा छकड़ा गाड़ी सहित खाई में जा गिरा। (Moral Stories in Hindi)
▶ चरवाहे को सबक ◀
किसी स्थान पर एक घना और हरा-भरा जंगल था। उस जंगल में बहुत से जानवरों ने अपने घर बना रखे थे। वहीं एक भेड़िया भी रहता था। लेकिन जंगल का प्रत्येक जानवर भेड़िये से बचकर रहता था। भेड़िया रोजाना रात में किसी न किसी जानवर को पकड़ लेता और उन्हें मारकर खा जाता। वह बहुत धूर्त था और किसी भी जानवर पर दया नहीं करता था।
धीरे-धीरे जंगल के सभी जानवरों ने भेड़िये से दूर रहना शुरू कर दिया। अब उसे खाने के लिए कुछ भी नहीं मिलता था। भोजन न मिलने के कारण भेड़िये को बहुत गुस्सा आ रहा था।
उसी जंगल के पास एक छोटा-सा गांव था। उस गांव में बहुत से चरवाहे रहते थे। वे रोजाना अपने जानवरों को जंगल में ले जाते और उन्हें चरने के लिए छोड़ देते। जब भेड़िये ने उन जानवरों को देखा, तो रात्रिकाल गांव में जाकर उन्हें खाने का मन बना लिया।
एक रात भेड़िया उस गांव की ओर गया। जब वह गांव के अंदर घुसने वाला था, तभी अचानक एक चरवाहे ने उसे देख लिया और जलती हुई मशाल से डराकर उसे दूर तक खदेड़ दिया।
भेड़िया आग को देखते ही डर गया था और उसकी जलन के बारे में सोचकर जंगल की ओर सरपट दौड़ पड़ा था।अगले दिन वह भेड़िया जंगल में इधर-उधर भटकता रहा, ताकि कुछ खाने को मिल सके। लेकिन उसे कहीं भी कुछ न मिल सका।

उस रात भेड़िया एक बार फिर गांव में गया। उसने अपने आसपास निगाह दौड़ाई। तभी उसने एक स्थान पर देखा कि कुछ चरवाहे मिलकर मांस खा रहे थे। भेड़िया उन्हें मांस खाता देखकर हैरान रह गया और उनसे बोला, “अरे, दुष्ट लोगो! तुम लोग मुझसे अपने जानवरों की रक्षा करने के लिए मुझे दूर तक खदेड़ आए थे, जबकि तुम स्वयं उन्हें मारकर उनका मांस खा रहे हो।
तुम्हारे जानवर तुम पर विश्वास करते हैं कि तुम उनकी रक्षा करोगे। अरे, अपने आपको देखो कि तुम कितना गलत काम कर रहे हो। तुम्हें शर्म आनी चाहिए।” इतना कहकर भेड़िया गुस्से से पैर पटकता वहां से चला गया। भेड़िये की बात सुनकर चरवाहे बहुत शर्मिंदा हुए। उसके बाद उन्होंने अपने ही पशुओं को मारकर उनका मांस खाना छोड़ दिया।
:- Moral Stories -:
▶ चतुर चूहा ◀
एक बार की बात है। किसी जंगल में एक बैल रहता था। वह बहुत विशाल और शक्तिशाली था। सभी जानवर उससे काफी डरते थे। बैल भी जंगल के सभी जानवरों को धमकाकर रखता था।
बैल को अपनी ताकत पर जरूरत से ज्यादा भरोसा था। वह अक्सर कहता, “मैं इस जंगल का सबसे ताकतवर जानवर हूं। मुझे कोई भी हरा नहीं सकता। में जंगल ,के राजा शेर से भी ज्यादा ताकतवर हूं।”
एक दिन जंगल के सभी जानवरों ने इस समस्या से निपटने के लिए एक सभा का आयोजन किया।
चूहे ने कहा, “बैल हमारे साथ बहुत बुरा व्यवहार करता है। माना कि वह हम सबसे अधिक ताकतवर है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह हमें मारता रहे। हमें कोई न कोई रास्ता अवश्य निकालना चाहिए।”

तभी चूहे को एक उपाय सूझ गेया। वह बोला, “चलो, मैं उस बैल को सबक सिखाता हूं। वह सोचता है कि केवल वही ताकतवर है। मैं उसे दिखा दूंगा कि एक छोटा-सा चूहा भी उसका घमंड तोड़ सकता है।”
अगले दिन बैल एक पेड़ की छाया में बैठा था और सपने देख रहा था। तभी चूहा चुपके से उसके पीछे गया और उसके पैर पर काट लिया। बैल दर्द से छटपटा उठा। उसने देखा कि एक चूहा उससे दूर भागता जा रहा है।
बैल तुरंत उठा और चूहे को पकड़ने के लिए उसके पीछा दौड़ा। लेकिन चूहा तेजी से अपने बिल में जा घुसा। बैल अपनी सींगों से बिल खोदकर चूहे को पकड़ना चाहता था, लेकिन वह असफल रहा।
चूहे का बिल खोदने के कारण बेचारा बैल काफी थक गया था। इसलिए वह बिल के बाहर बैठकर उसका इंतजार करने लगा। थोड़ी देर बाद चूहा बिल से बाहर आया और दोबारा उसके पैर पर काटकर अपने बिल में जा घुसा। बैल के पैर में तेज दर्द होने लगा।
तभी चूहे ने बिल से बाहर झांका और बोला, “अरे बैल, यह मत सोचो कि केवल तुम ही ताकतवर हो। मेरे जैसा एक छोटा-सा चूहा भी तुम्हारा घमंड तोड़ सकता है। अत: घमंड करना ठीक नहीं है।”(Moral Stories in Hindi)
▶ लोमड़ी और शेर ◀
काफी समय पहले की बात है। एक लोमड़ी अपना भोजन ढूंढ़ने के लिए जंगल में इधर-उधर भटकती रहती थी। लेकिन वह इतनी कमजोर हो गई थी कि अब शिकार नहीं कर पाती थी।
एक दिन लोमड़ी को एक तरकीब सूझी । वह शेर के पास गई और बोली, “हे शक्तिशाली महाराज! तुम इस जंगल के राजा हो और मैं आज से तुम्हारी नौकरानी हूं। मैं शिकार करने में तुम्हारी मदद किया करूंगी।
लोमड़ी की बात सुनकर शेर बहुत खुश हुआ। उसने लोमड़ी की बात मान ली और उससे बोला, “ठीक है, अब हम दोनों एक साथ शिकार किया करेंगे। लेकिन शिकार किया हुआ भोजन पहले मैं खाऊंगा। उसके बाद जो कुछ बचेगा, वह तुम्हारे लिए होगा। तुम उसे खा सकती हो।”
शेर की बात सुनकर लोमड़ी बहुत प्रसन्न हुई। अब वह रोजाना शेर के साथ जाती और वे दोनों शिकार करते। लोमड़ी की आंखें बहुत तेज थीं। वह दूर से ही शिकार देख लेती और उसके बारे में शेर को बता देती। फिर शेरउसे पकड़कर मार डालता। शेर रोजाना पहले भोजन करता और बचा हुआ खाना लोमड़ी के लिए छोड़ देता।

इस तरह कुछ महीने बीत गए। लोमड़ी बहुत मजे से रह रही थी। अब उसे अपने भोजन के लिए किसी पशु का शिकार करने की जरूरत नहीं थी। लेकिन उसे मन ही मन शेर से जलन होने लगी। उसने सोचा, ‘में शिकार करने में आधा योगदान देती हूं, फिर भी शेर मुझे पहले नहीं खाने देता। वह पहले खुद खाना खाता है और मुझे बचा हुआ भोजन खाना पड़ता है। अब मैं स्वयं ही अपने लिए शिकार किया करूंगी।’
फिर वह लोमड़ी घमंड से भरकर शेर के पास गई और उससे बोली, आज से मैं तुम्हारे साथ शिकार नहीं करूंगी।”
अगले दिन लोमड़ी अपने खाने की तलाश में निकली। वह पास के एक गांव में पहुंचकर इधर-उधर घूमने लगी। तभी अचानक दो शिकारियों की नजर उस पर पड़ गई। उन्होंने उसे डंडों द्वारा पीट-पीटकर मार डाला। इस तरह लोमड़ी को अपने अभिमान का फल मिल गया। (Moral Stories in Hindi)
▶ भूखा भेड़िया ◀
बहुत समय पहले की बात है। किसी जंगल में एक भेड़िया रहता था। वह रोजाना अपने परिवार के लिए भोजन तलाश करने जाता था, लेकिन कभी-कभी खाली हाथ लौट आता था।
एक दिन भेड़िया अपने घर से शिकार के लिए निकला। वह जंगल में बहुत देर तक इधर-उधर भटकता रहा, लेकिन उसे भोजन के लिए कुछ भी नहीं मिला। तभी भेड़िये को जंगल में उसका एक पुराना मित्र मिल गया और उसने उसे अपनी समस्या बताई।
भेड़िये का मित्र बोला, “आज तो मुझे भी जंगल में कोई शिकार नहीं मिला था। मैं जंगल में इधर-उधर भटकते हुए किसी गांव में पहुंच गया। वहां मुझे कुछ खाने को मिल गया। तुम्हें भी उस गांव में जाना चाहिए।” अपने मित्र की बात सुनकर भेड़िया बहुत खुश हुआ और वह भी तुरंत उस गांव की ओर रवाना हो गया।
जब भेड़िया गांव में पहुंचा, तो उसने एक मां को अपने बेटे से कहते सुना, “जल्दी से अपना खाना खा लो, नहीं तो मैं तुम्हें खिड़की से बाहर फेंक दूंगी। फिर भेड़िया आकर तुम्हें खा जाएगा।”

जब यह बात भेड़िये ने सुनी, तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। वह चुपके से जाकर खिड़की के पास खड़ा हो गया और इंतजार करने लगा कि बच्चे की मां उसे खिड़की से बाहर फेंके।
लेकिन इंतजार करते-करते दिन से रात हो गई। भेड़िये को खाना नहीं मिला। वह थककर चूर हो चुका था और उसे गुस्सा भी आने लगा था। फिर भेड़िये ने खिड़की से उस घर के अंदर झांककर देखा और मां को बच्चे से यह कहते हुए सुना, “डरो मत मेरे बेटे! अगर भेड़िया आ गया, तो हम दोनों मिलकर उसे मार डालेंगे।”
अब बेचारा भेड़िया मायूस हो गया। उसे जोरों से भूख लगी थी और कमजोरी महसूस हो रही थी। सबसे बड़ी बात यह थी कि आज उसके कुछ साथ धोखा हो गया था। वह निढाल अवस्था में अपने घर की ओर रवाना हो गया।
जब भेड़िया अपने घर पहुंचा, तो उसकी पत्नी ने पूछा, “आज तुम हमारे लिए कोई खाना क्यों नहीं लाए?” भेड़िये ने जवाब दिया, “क्योंकि आज मैंने एक औरत की बात पर भरोसा कर लिया था।”(Moral Stories in Hindi)
▶ पनीर का टुकड़ा ◀
काफी पुरानी बात है। एक बार एक भेड़िया और एक लोमड़ी बहुत अच्छे दोस्त थे। वे दोनों मिलकर शिकार करते और किसी पेड़ की छाया में बैठकर मजे से खाते। भेड़िया बहुत दयालु था। वह अक्सर अपने हिस्से में से भी लोमड़ी को भोजन दे देता था। लेकिन लोमड़ी बहुत धूर्त थी। कभी-कभी वह अकेले ही सारा भोजन खा जाती थी।
एक रात आसमान साफ था और तारे चमक रहे थे। ऐसे में लोमड़ी अपने घर से निकलकर जंगल में इधर-उधर घूमने लगी। थोड़ी देर बाद उसे प्यास लगी और उसने पानी पीने के लिए एक कुएं में झांका।
लोमड़ी हैरान होकर बोली, “अरे वाह! यह तो पनीर का एक सुंदर टुकड़ा लग रहा है। मुझे तुरंत इस कुएं के अंदर जाना चाहिए और अकेले ही उसे खा लेना चाहिए। कुएं के अंदर पनीर खाते मुझे कोई भी नहीं देख सकेगा।”

तभी लोमड़ी को वहां दो बाल्टियां दिखाई दीं, जो एक रस्सी के दोनों सिरों से बंधी हुई थीं। उन बाल्टियों द्वारा कुएं से पानी निकाला जाता था। वह एक बाल्टी में बैठ गई और धीरे-धीरे कुएं के अंदर चली गई।
लेकिन जब लोमड़ी कुएं के अंदर पहुंची. तो वह भौचक्की रह गई वहां तो कुछ भी नहीं था। वह दो दिनों तक उसी बाल्टी में बैठी रही। तीसरे दिन उसने अपने दोस्त भेड़िये को वहां से गुजरते देखा। उसने उसे बुलाया, “अरे दोस्त! आओ, तुम भी कुएं के अंदर आ जाओ। देखो तो सही, यहां कितना बड़ा पनीर का टुकड़ा पड़ा है।”
भेड़िया तुरंत दूसरी बाल्टी में जा बैठा और कुएं के अंदर पहुंच गया। जब भेड़िया नीचे आया, तो रस्सी से बंधी दूसरी बाल्टी ऊपर हो गई और उस बाल्टी सहित लोमड़ी कुएं के बाहर आ गई। उसने तुरंत बाल्टी से छलांग लगाई और वहां से निकल भागी।
बेचारा भेड़िया उस कुएं में अकेला ही रह गया। इसीलिए कहा गया है कि बिना सोचे-विचारे कोई भी काम नहीं करना चाहिए। भेड़िये ने बिना सोचे-समझे धूर्त लोमड़ी की बात मान ली और कुएं के भीतर रह गया। अगर वह लोमड़ी की चालाकी समझ लेता, तो अपना नुकसान न करता। (Moral Stories in Hindi)
▶ शेर का घमंड ◀
किसी घने जंगल में एक शेर रहता था। उसे अपनी ताकत पर बहुत घमंड था। वह किसी दूसरे जानवर से कोई लगाव नहीं रखता था। शेर रोजाना जंगल में घूमकर अपना शिकार तलाश करता था। वह जंगल के छोटे-बड़े जानवरों को पकड़ता और उन्हें मारकर खा जाता। ऐसी स्थिति में जंगल के सभी जानवर उससे बहुत डरते थे।
एक दिन जंगल के सभी जानवर बरगद के एक पेड़ के नीचे इकट्ठा हुए। एक हिरन ने बूढ़े हाथी से कहा, “हे महाराज! हमें अपनी जान की चिंता दिन-रात सताती रहती है। कृपा करके हमें कोई उपाय बताएं, ताकि हम अपनी जान की रक्षा कर सकें।”
हाथी ने कहा, “हमें रोजाना किसी एक जानवर की बलि देनी होगी। ऐसे में शेर बाकी जानवरों को परेशान नहीं करेगा।” यह सुनकर सभी जानवर उदास हो गए, लेकिन उनके पास इसके सिवा कोई उपाय नहीं था।

पहले दिन एक आलसी खरगोश को शेर के भोजन के लिए भेजा गया। वह धीरे-धीरे चलता हुआ शेर की गुफा की ओर जा रहा था। जब वह शेर के पास पहुंचा, तो उसने पूछा, “तुम्हें आने में इतनी देर क्यों हो गई?”
खरगोश ने डरते हुए उत्तर दिया, “यहां आते समय मुझे एक दूसरे शेर ने रोक लिया था। लेकिन मैं किसी तरह वहां से भाग आया।” यह सुनकर शेर को गुस्सा आ गया। वह बोला,”क्या कहा? दूसरा शेर?और वह भी मेरे जंगल में? चलो, मुझे उसके पास ले चलो।”
वह खरगोश शेर को एक कुएं के पास ले गया। शेर ने कुएं में झांका। पानी में अपनी परछाईं को उसने दूसरा शेर समझा और बहुत जोर से दहाड़ा। उसकी दहाड़ कुएं में गूंजी और शेर को सुनाई दी। शेर ने सोचा कि पानी में छिपा दूसरा शेर भी दहाड़ रहा है। इसलिए उसने बिना सोचे-समझे कुएं में छलांग लगा दी, ताकि वह उस शेर से लड़ सके।
यह देखकर जंगल के सभी जानवर बहुत खुश हुए। शेर ने कुएं से बाहर निकलने के लिए काफी प्रयास किया, लेकिन असफल रहा। फिर वह कुछ ही दिनों में मर गया। जंगल के सभी जानवरों ने चैन की सांस ली और खरगोश की बहुत तारीफ की। फिर वे सुखपूर्वक रहने लगे।
:- Short Moral Stories in Hindi -:
▶ बेरहम बिल्ली ◀
बहुत समय पहले की बात है। किसी स्थान पर एक तीतर रहती थी। उसने एक हरे-भरे पेड़ के नीचे अपने रहने के लिए एक घर बना रखा था। वह पेड़ काफी छाया देता था और उस पर बहुत सुंदर फूल लगते थे। तीतर अपने घर से बहुत प्यार करती थी और उसे हमेशा सजाकर रखती थी।
सर्दी का मौसम शुरू हो चुका था। एक दिन तीतर को अपने घर के आसपास खाने के लिए कुछ नहीं मिला। अतः उसने भोजन तलाश करने के लिए किसी खेत में जाने का विचार किया।
जब तीतर एक खेत में पहुंची, तो उसने देखा कि वहां उसके लायक बहुत-सा खाना था। उसने कुछ दिन खेत में ही रुकने का फैसला किया। वह मजे से पेट भरकर खाना खाती। इससे उसका शरीर भी गर्म रहता था।

इधर एक खरगोश अपने आपको भयंकर सर्दी से बचाने के लिए कोई घर ढूंढ रहा था। वह घूमते-घूमते तीतर के घर के पास पहुंच गया। उसने दरवाजा खटखटाया, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं मिला। ऐसे में उसने सोचा, ‘यह घर तो बहुत सुंदर है। लेकिन लगता है, यहां कोई नहीं रहता। मैं सर्दी के मौसम में यहां आराम से रह सकता हूं।’फिर वह खरगोश तीतर के घर में रहने लगा।
कुछ समय बाद जब तीतर वापस आई, तो खरगोश को अपने घर में देखकर हैरान हो गई। उसने खरगोश को फौरन अपने घर से निकल जाने के लिए कहा। खरगोश बोला, “घर उसका होता है, जो वहां रहता है। अब यह मेरा है।” इस तरह तीतर और खरगोश में बहस छिड़ गई।
तभी एक बिल्ली उधर से गुजरी। खरगोश और तीतर ने उस बिल्ली से यह मामला निपटाने का विचार किया। फिर वे बिल्ली के पास गए और उसे सब कुछ बता दिया। बिल्ली ने ऐसा बहाना किया, जैसे उसे कुछ भी सुनाई न दे रहा हो। वह बोली, “मैं तुम्हारी बातें इतनी दूर से नहीं सुन पा रही हूं। जरा मेरे पास आओ और मेरे कान में बोलो।”
पहले तो खरगोश और तीतर को डर लगा, लेकिन बिल्ली ने उन्हें दिलासा दिया कि वह उनका कोई नुकसान नहीं करेगी। तब जैसे ही खरगोश और तीतर बिल्ली के पास गए, वैसे ही बिल्ली ने झपटकर उन दोनों को पकड़ लिया और उन्हें मारकर खा गई। (Moral Stories in Hindi)
▶ कछुआ और हंस ◀
गर्मी के दिनों को बात है। सूरज आसमान में आग उगल रहा था। बरसात का कोई नामोनिशान नहीं था। एक जंगल के सभी जानवर पानी न मिलने के कारण परेशान हो रहे थे। सभी जगह धीरे-धीरे सूखा पड़ता जा रहा था। अब केवल बरसात ही सूखी झीलों को पानी दे सकती थी।
उसी जंगल में तीन मित्र रहते थे-एक कछुआ और दो हंसों का जोड़ा। कछुआ हंसों से बोला, “यदि पानी नहीं बरसा, तो हम लोग क्या करेंगे? हम क्या पिएंगे? इससे पहले कि यह झील पूरी तरह सूख जाए, हमें किसी दूसरी झील पर चले जाना चाहिए।”
कछुए की बात सुनकर दोनों हंस किसी दूसरे स्थान पर जाने के लिए तैयार हो गए। तत्पश्चात् एक हंस बोला, “हम तो उड़कर दूसरी झील पर जा सकते हैं। लेकिन तुम नहीं उड़ सकते। तुम वहां कैसे जाओगे?”

दूसरे हंस ने सुझाव दिया, “हम दोनों लकड़ी के एक डंडे को दोनों तरफ से अपनी-अपनी चोंच द्वारा पकड़ लें और कछुआ उसे बीच में अपने मुंह से पकड़ ले। इस तरह हम तीनों उड़कर दूसरी झील पर जा सकते हैं। लेकिन कछुए भाई, तुम एक बात का ध्यान रखना। बीच रास्ते में अपना मुंह नहीं खोलना, नहीं तो तुम नीचे गिरकर मर जाओगे।”
हंसों की बात सुनकर कछुआ तैयार हो गया और तीनों मित्र दूसरी झील की तलाश में वहां से उड़ चले।
सभी लोग दो हंसों के सहारे उड़ते हुए कछुए को देखकर हंसने लगे। वे बोले, “अरे देखो, क्या तुमने कभी कछुए को उड़ते हुए देखा है?”
यह सुनकर कछुआ बहुत व्याकुल हो गया। सभी लोग उसका मजाक रहे थे। वह लोगों को इस तरह अपने ऊपर हंसते हुए नहीं देख सकता उड़ा था, इसलिए वह बोल पड़ा, “मित्रो! जरा रुको। मैं नीचे जाना चाहता हूं। वे लोग मेरा मजाक उड़ा रहे हैं।”
लेकिन अपना मुंह खोलने के कारण डंडे से कछुए की पकड़ छूट गई। कछुआ सिर के बल जमीन पर जा गिरा और तत्काल मर गया।
कछुए को अपनी जान से ज्यादा लोगों की बातों की चिंता थी। इसी मूर्खता के कारण उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। अगर वह कछुआ अपना मुंह खोलने से पहले उसके अंजाम को समझ लेता, तो उसे किसी भी प्रकार का कोई नुकसान न होता।
▶ हाथी और चूहे ◀
किसी जंगल में हाथियों का एक झुंड रहता था गर्मी के दिन थे और आसपास के सभी तालाब सूख गए थे। इसलिए हाथी पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे। लेकिन दूर-दूर तक पानी का नामोनिशान नहीं था।
एक दिन जब हाथी पानी की तलाश में कहीं जा रहे थे, तो उन्होंने एक बड़े पेड़ के नीचे रुकने का निर्णय किया। चूंकि सभी हाथी लंबी यात्रा के कारण थक चुके थे, अतः वे सब जमीन पर बैठ गए।
उस पेड़ के नीचे बहुत से चूहे अपनी-अपनी बिलों में काफी समय से रह रहे थे। वे आसपास के खेतों में घुसकर अनाज के दाने खाते थे और अपने बिलों में चैन से जीवन बिताते थे। इस प्रकार उन्हें किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ती थी।

जब हाथी पेड़ नीचे बैठे, तो बहुत-सी बिलें दब गईं। ऐसे में अनेक चूहे अपनी बिलों में ही दबकर मर गए। यह देखकर चूहों का मुखिया बहुत नाराज हुआ।
वह हाथियों के सरदार के पास गया और उनसे विनती की, “प्यारे हाथी महाराज, हम चूहों के घर इस पेड़ के नीचे हैं। आपके साथियों के यहां बैठने से हमारे घर दब रहे हैं और हमारे साथी मर रहे हैं। क्या आप सब किसी दूसरे पेड़ के नीचे जाकर बैठ सकते हैं?”
हाथियों का सरदार चूहों के मुखिया से बिना कोई बहस किए चुपचाप अपने दल के साथ वहां से चला गया। इससे सभी चूहे बहुत खुश हुए और उनके जाने से पूर्व उन्होंने हाथियों को धन्यवाद दिया।
कुछ दिनों बाद जंगल में अनेक शिकारी शिकार करने के लिए आए और उन्होंने कई हाथियों को अपने जाल में फंसा लिया। हाथी ताकतवर होने के बावजूद उस जाल को नहीं तोड़ सके और उसमें फंसकर रह गए।
ऐसी स्थिति में बंदी हाथियों का एक साथी चूहों के मुखिया के पास गया और उनसे सहायता मांगी चूहों का झुंड उसके साथ उस ओर चल पड़ा, जहां हाथी जाल में फंसे थे।
फिर सभी चूहों ने मिलकर हाथियों का जाल काटना शुरू कर दिया। शीघ्र ही सभी हाथी शिकारियों के जाल से आजाद हो गए। सबने चैन की सांस ली। हाथियों के सरदार ने चूहों का आभार व्यक्त किया। तत्पश्चात् वे सभी आपस में दोस्त बन गए और एक दूसरे की परेशानियों में काम आने लगे।
वस्तुतः मुसीबत के समय एक-दूसरे की सहायता करने वाले लोग ही सच्चे दोस्त होते हैं। वे हर हाल में परस्पर मदद करने के लिए तैयार रहते हैं, चाहे उन्हें कितनी ही आपदाओं और कष्टों का सामना क्यों न करना पड़े।
▶ केकड़े ने घर छोड़ा ◀
किसी रेतीले समुद्री तट पर एक चमकदार केकड़ा रहता था। सब लोग उसे बहुत पसंद करते थे। वह रोजाना समुद्र में जाता और पानी में डुबकी लगाकर आ जाता। केकड़ा अपने दोस्तों और परिवार से बहुत प्यार करता था।
एक दिन केकड़े ने दो कुत्तों को बातें करते हुए सुना। एक कुत्ता कह रहा था, “मैं पास के एक स्थान पर गया था। वह बहुत सुंदर जगह है। वहां बहुत हरे-भरे पेड़ हैं और उनमें खूब फल लगे हैं।” उनकी बातें सुनकर केकड़े के मन में भी वहां जाने की इच्छा हुई।
अगले दिन केकड़े ने उस स्थान पर जाने के बारे में अपने साथियों तथा परिवार वालों को बताया। सभी लोगों ने उसे समझाते हुए कहा, “अरे भाई! बाहर की दुनिया बहुत खतरनाक होती है। तुम वहां किसी को नहीं जानते, अतः तुम्हें अकेले नहीं जाना चाहिए।” लेकिन केकड़े ने उनकी बात न मानी और उस स्थान की ओर चल पड़ा।
उस स्थान पर पहुंचते ही केकड़ा हैरान रह गया। वह वहां की हरियाली और सुंदरता देखकर मुग्ध हो गया। सभी पेड़ों पर सुंदर फल और फूल लगे हुए थे। वह उन्हें आसानी से खा सकता था। वह अपने-आपसे बोला, “अरे, वाह! मैं तो स्वर्ग में आ गया हूं। मैं यहां के सारे फल खाना चाहता हूं।” यह कहकर वह जंगल के अंदर जाने लगा।

जब केकड़ा उस जंगल से गुजर रहा था, तो उसके पास से एक लोमड़ी गुजरी। लोमड़ी ने सोचा, ‘मुझे भूख लगी है और मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया है। यह केकड़ा मुझे बहुत लाजवाब लग रहा है। इसे पकड़कर मुझे अपनी भूख मिटानी चाहिए। लेकिन यह मुझे डंक मार सकता है।’
केकड़े के डंक से बचने के लिए चालाक लोमड़ी ने एक उपाय सोचा। वह केकड़े के पास गई और पेड़ से आम तोड़ने में उसकी सहायता करने का आश्वासन दिया। वह प्यार से बोली, “अरे केकड़े, तुम मेरी पीठ पर खड़े होकर आम क्यों नहीं तोड़ते।
इससे तुम आम के काफी नजदीक पहुंच जाओगे।” यह सुनकर केकड़ा बहुत खुश हुआ और जल्दी से लोमड़ी की पीठ पर जाकर बैठ गया। लोमड़ी ने बड़ी चतुराई से उसे लपका और मारकर खा गई। (Moral Stories in Hindi)
▶ हंस और चील ◀
किसी स्थान पर दो चीलों और दो हंसों का जोड़ा रहता था। उन सबकी आवाजें बहुत मधुर थीं। जंगल के सभी प्राणी उनसे बहुत प्रेम करते थे। दूसर जंगलों के प्राणी भी उनकी आवाजें सुनने के लिए आते थे।
चीलों तथा हंसों को अपनी आवाजों पर बहुत नाज था। वे अपनी आवाजों की मधुरता बनाए रखने के लिए बहुत ध्यान देते थे। वे रोजाना अपनी आवाजों का अभ्यास करते और खास-खास मौकों पर जंगल के सभी जानवरों के सामने उसका प्रदर्शन करते।
एक दिन वे चारों अपनी-अपनी आवाजों का अभ्यास कर रहे थे। तभी अचानक उन्हें कुछ दूरी पर किसी दूसरे प्राणी के गाने की आवाज सुनाई दी। उन्हें आश्चर्य हुआ कि कौन प्राणी इतना मधुर गीत गा रहा है। उसे देखने के लिए वे उस ओर बढ़े, जिधर से आवाज आ रही थी।

वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि एक घोड़ा गाना गा रहा था। उसकी आवाज बहुत मधुर थी। एक चील ने उससे कहा, “अरे, वाह! इसकी आवाज कितनी सुरीली है। क्यों न हम इसे भी अपने दल में शामिल कर लें। इसके आने से हमारे गीत काफी मधुर हो जाएंगे। आप लोग इस बारे में क्या कहते हैं?”
एक हंस कुछ देर तक सोचता रहा, फिर बोला, “ठहरो! इसकी आवाज तो सचमुच मधुर है। लेकिन इसे दल में शामिल करने के बजाय क्यों न हम इसकी आवाज की नकल करें? इससे हमारे श्रोताओं को अलग तरह का गीत सुनने को मिल जाएगा और वे मंत्रमुग्ध हो जाएंगे।”
हंस की बात सुनकर चीलें भी तैयार हो गईं। उन्होंने कुछ देर तक घोड़े को गाना गाते हुए सुना, फिर अपने घर वापस आ गए। अगले कुछ दिनों तक चील और हंस घोड़े की आवाज की नकल करते हुए गीत गाते रहे।
उन्होंने उसी अंदाज में घोड़े की आवाज निकालने की कोशिश की, जैसे कि वह ऊंचे और मोटे सुर में गा रहा था, जबकि उनकी अपनी आवाजें बहुत पतली एवं कोमल थीं। इस दौरान वे अपनी असली आवाजों में गीत गाना भूल चुके थे।
एक कार्यक्रम के अवसर पर चीलें एवं हंस बहुत दु:खी और निराश लग रहे थे। उनके गले से उनकी आवाजें ही नहीं निकल रही थीं। जब वे मंच पर गए, तो उनसे गाना नहीं गाया जा सका। वे संगीत के साथ तालमेल बिठाने में भी नाकाम रहे, क्योंकि उन्होंने उसका अभ्यास ही छोड़ दिया था। उसके बाद कोई भी जानवर उनका गाना सुनने नहीं आया।
Moral Stories for Childrens in Hindi
▶ चतुर पक्षी ◀
एक बार को बात है। किसी खेत में एक बिल्ली रहती थी। उसे पक्षियों को मारकर खाना बहुत अच्छा लगता था । गर्मी में बहुत से पक्षी मौसम के बदलाव के कारण उस खेत पर आते थे। उस दौरान बिल्ली बहुत खुश रहती थी, क्योंकि उसे रोजाना कोई न कोई पक्षी खाने को मिल जाता था।
ऐसी स्थिति में खेत पर रहने वाले सभी पक्षी बिल्ली से बहुत डरने लगे थे। जब वे देखते कि बिल्ली उनकी ओर आ रही है, तो वे फौरन उड़ जाते और इस तरह बिल्ली से अपनी रक्षा करते।
एक दिन पक्षियों ने किसान को कहते सुना, “मेरे सारे पक्षी बीमार हो रहे हैं। मुझे इनकी अच्छी तरह देखभाल करनी चाहिए।” जब बिल्ली ने यह बात सुनी, तो वह बहुत खुश हुई। उसने सोचा कि यह एक अच्छा मौका है। उसे बहुत से पक्षी खाने को मिल जाएंगे।
इसी दौरान बिल्ली को एक तरकीब सूझ गई। उसने एक डॉक्टर का रूप धारण करके अपने गले में आला लटका लिया। वह सोचने लगी, ‘अब में एक डॉक्टर लग रही हूं। मुझे जाकर उन पक्षियों की जांच करनी चाहिए।
वे मेरा कोट देखकर आसानी से मेरे झांसे में आ जाएंगे। जब वे मेरे सामने बैठेंगे, तो मैं उन्हें तत्काल पकड़कर अपने बैग में डाल लूंगी। ऐसा करने से कई दिनों तक मुझे उनका शिकार नहीं करना पड़ेगा।’

यह सोचकर बिल्ली के चेहरे पर एक क्रूर मुस्कान आ गई। वह अपना बैग उठाकर पक्षियों के घर की ओर चल पड़ी।
पक्षियों के घर पहुंचकर बिल्ली ने दरवाजा खटखटाया और अंदर झांकते हुए बोली, “मैंने सुना है कि यहां बहुत से पक्षी बीमार हैं। मुझे किसान ने उन्हें दवा देने के लिए भेजा है।”
पक्षी उस धूर्त बिल्ली की चाल समझ गए। उन्होंने उत्तर दिया,अब सारे पक्षी सही-सलामत हैं। हममें से कोई भी पक्षी बीमार नहीं है। तुम्हें शायद कोई गलत-फहमी हुई है। यदि तुम हमारे घरों से दूर चली जाओ, तो हम लोग काफी आराम से रहेंगे।”
यह सुनकर बिल्ली बहुत निराश हो गई। वह समझ गई कि पक्षियों को उसकी चाल मालूम हो गई है और अब वे उसके झांसे में नहीं आएंगे। इसलिए उसने अपना बैग संभाला और किसी दूसरे खेत की ओर चल पड़ी। (Moral Stories in Hindi)
▶ राजा के नकली बाल ◀
एक बार की बात है। किसी राज्य में एक राजा शासन करता था। वह अत्यंत वीर, दयालु और साहसी था। उसके राज्य की प्रजा बहुत सुखी थी। अब राजा बूढ़ा हो चला था। उसके बाल झड़ रहे थे और वह गंजा होता जा रहा था।
लेकिन राजा अपने आपको गंजा नहीं देखना चाहता था। गंजेपन के कारण उसे बहुत शर्म आती थी। वह दूसरे राज्यों से आए राजाओं और राजकुमारों से भी मिलने से कतराता था। अन्य राजा जवान थे और उनके बाल भी सही-सलामत थे।
एक दिन राजा ने अपने मंत्रियों से कहा कि वे उसके लिए अच्छे किस्म के नकली बालों का इंतजाम करें। अगले दिन राजा के मंत्री बाजार गए और वहां से अच्छे किस्म के नकली बाल खरीद लाए। राजा ने वे बाल सिर पर पहन लिए और आईने के सामने खड़ा होकर स्वयं को देखने लगा।
अपने को देखकर वह बहुत खुश हुआ। कुछ समय बाद उसने मंत्रियों से कहा, “तुम सबने बहुत अच्छा काम किया है। यह बाल मुझे बहुत पसंद हैं। मैं तुम सबको धन्यवाद देता हूं।”इस प्रकार राजा ने रोजाना नकली बाल पहनना आरंभ कर दिया।

अब वह जहां भी जाता, उन नकली बालों को पहनकर जाता। लोग उसके बाल देखते और उसकी प्रशंसा करते। राजा भी लोगों के मुंह से अपनी प्रशंसा सुनकर खुशी से फूला न समाता।
एक दिन उस राजा के पड़ोसी राजा ने उसे और कई अन्य राजाओं को शिकार खेलने के लिए पास के एक जंगल में आमंत्रित किया। राजा वहां जाने के लिए तैयार होने लगा। उसने अपने बाल भी अपने सिर पर पहन लिए। राजा नहीं चाहता था कि उसके पड़ोसी राजा उसका गंजा सिर देखें और उसकी हंसी उड़ाएं।
सभी राजा निर्धारित समय पर पास के जंगल में पहुंच गए और उन्होंने शिकार करना आरंभ कर दिया। तभी जोर से हवा का एक झोंका आया और राजा के नकली बाल उड़ा ले गया। सारे राजा उसका गंजा सिर देखकर जोर-जोर से हंसने लगे। इससे राजा बहुत शर्मिंदा हुआ।
वह उनके पास पहुंचकर बोला, “जब यह बाल उस व्यक्ति के सिर पर नहीं टिक सके, जिसके सिर से यह उतरे हैं, तो भला मेरे सिर पर कैसे टिकेंगे?” राजा की बात सुनकर सभी राजा ठहाके मारकर जोर-जोर से हंसने लगे और शिकार करने के बाद अपने-अपने राज्यों को वापस चले गए।
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▶ बुद्धिमान उल्लू ◀
काफी समय पहले की बात है। किसी जंगल में एक बुद्धिमान और दयालु उल्लू रहता था। उसने अपने जीवन में कई अच्छे गुण सीखे थे। वह उन्हें दूसरे पक्षियों के साथ साझा करना चाहता था। वह चाहता था कि सभी पक्षी सुखी और सुरक्षित रहें। ऐसी स्थिति में उसने निश्चय किया कि वह अन्य पक्षियों से अपनी बात कहेगा।
एक दिन उल्लू ने सभी पक्षियों को एक पेड़ के पास बुलाया। जब सारे पक्षी वहां एकत्र हो गए, तो वह बोला, “प्यारे मित्रो! मैंने आप सबको यहां एक जरूरी काम से बुलाया है। मैं आप लोगों को जीवन के कुछ अच्छे मंत्र देना चाहता हूं, ताकि आप लोग इस जंगल में सुरक्षित जीवन जी सकें।”
सभी पक्षी चुपचाप उल्लू की बात सुन रहे थे। उसने आगे कहा, कभी आप लोग जमीन पर बलूत का पौधा उगता देखें, तो उसे फौरन उखाड़कर नष्ट कर दें। बलूत के बीज एक प्रकार का जहर बनाने के काम आते हैं, जिससे शिकारी हमारा शिकार करते हैं।”

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सभी पक्षी हैरान होकर उल्लू की बात सुनते रहे। वे सोचने लगे कि उल्लू को यह सब कैसे मालूम है? उल्लू ने अपनी बात जारी रखी, “इसी प्रकार अलसी के बीजों को भी नष्ट कर देना चाहिए। शिकारी लोग बहुत होशियार होते हैं। वे अलसी के बीजों से जाल बनाते हैं और हमें पकड़ने के लिए इस्तेमाल करते हैं।”
सभी पक्षी उल्लू की बातें सुनकर जोर-जोर से हंसने लगे। उनमें से एक पक्षी बोला, “तुम्हें यह सब कैसे मालूम है? तुम ये बातें अपने मन से बनाकर बोलते जा रहे हो।” फिर सारे पक्षी एक-एक करके वहां से उड़ गए उल्लू ने एक बार फिर उन्हें चेतावनी दी, “सावधान! मैं एक शिकारी को इस जंगल की ओर आता देख रहा हूं।”
फिर शीघ्र ही शिकारी ने बहुत से पक्षी पकड़ लिए। उसने मीठे और जहरीले बीज फेंककर पक्षियों को आकर्षित किया था तथा उन्हें अपने जाल में फंसा लिया था। वह उन्हें शहर में बेचने के लिए चल पड़ा।
यह सब देखकर जंगल के बाकी पक्षी उदास हो गए। वे सभी उल्लू के पास गए और उससे अपने गलत व्यवहार के लिए माफी मांगी। उन्होंने उल्लू से कई तरह की सलाह ली और ठीक वैसा ही किया,जैसा उल्लू ने बताया था। अब जंगल के सभी पक्षी सुरक्षित थे और बहुत मजे से जिंदगी बिता रहे थे। (Moral Stories in Hindi)